ईडी को सुप्रीम कोर्ट की फटकार, कहा- सारी हदें हो रही पार, राजनीतिक लड़ाई को एजेंसियों का इस्तेमाल क्यों

जैसा विपक्षी दल आरोप लगाते हैं, उस तरह के आरोपों पर ही सुप्रीम कोर्ट ने मुहर लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि प्रवर्तन निदेशालय (ED) सारी हदें पार कर रहा है। एक वकील और मुवक्किल के बीच की बातचीत विशेष होती है। भले ही वह गलत हो। उनके खिलाफ नोटिस कैसे जारी किए जा सकते हैं। कुछ तो गाइडलाइन होनी चाहिए। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने ED के उस एक्शन पर चिंता और नाराजगी जताई जिसमें एजेंसी ने जांच के दौरान कानूनी सलाह देने या मुवक्किलों की तरफ से पैरवी करने वाले वकीलों को समन दिया था। कोर्ट ने इस मामले में दिशा-निर्देश भी मांगे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सीजेआई बीआर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की बेंच कानूनी पेशे की स्वतंत्रता पर ऐसी कार्रवाइयों से पड़ने वाले असर से जुड़े एक मामले की सुनवाई कर रही थी। यह मामला ED की तरफ से सीनियर एडवोकेट अरविंद दातार और प्रताप वेणुगोपाल को तलब किए जाने के बाद उठा। इस मामले को कोर्ट ने खुद ही चुना था। अगली सुनवाई 29 जुलाई को होगी। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने दो अन्य मामलों की भी सुनवाई की। तीनों मामलों में दो टूक कहा कि राजनीतिक लड़ाई कोर्ट के बाहर लड़ी जानी चाहिए। राजनीतिक लड़ाई मतदाता के सामने लड़ी जाए। इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी नेता तेजस्वी सूर्या को राहत दी और MUDA घोटाला में कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती को भी राहत दी गई। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्या को राहत बरकरार रखी है। फेक न्यूज मामले में FIR रद्द करने का कर्नाटक हाईकोर्ट फैसला बरकरार रखा गया। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले में दखल देने से इनकार किया है। कर्नाटक सरकार को भी सुप्रीम कोर्ट ने फटकार भी लगाई। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इस बात पर जताई चिंता
सुप्रीम कोर्ट ने जांच के दौरान कानूनी सलाह देने या मुवक्किलों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों को प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा तलब करने पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए सोमवार को कहा कि ईडी सारी हदें पार कर रहा है। कोर्ट ने इस संबंध में दिशानिर्देश बनाने की जरूरत भी रेखांकित की। प्रधान न्यायाधीश बी. आर. गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की बेंच ने यह टिप्पणी विधिक पेशे की स्वतंत्रता पर इस तरह की कार्रवाइयों के प्रभावों पर ध्यान देने के लिए अदालत द्वारा स्वत: संज्ञान लेते हुए शुरू की गई एक सुनवाई के दौरान की। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कोर्ट की टिप्पणी ED की ओर से सीनियर वकील अरविंद दातार और प्रताप वेणुगोपाल को तलब किए जाने के बाद आई है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि एक वकील और मुवक्किलों के बीच का संवाद विशेषाधिकार प्राप्त संवाद होता है और उनके खिलाफ नोटिस कैसे जारी किए जा सकते हैं…वे सारी हदें पार कर रहे हैं। मैसूर अर्बन डेवलपमेंट बोर्ड (MUDA) केस में ED की अपील की सुनवाई के दौरान CJI ने कहा कि हमारा मुंह मत खुलवाइए। नहीं तो हम ED के बारे में कठोर टिप्पणियां करने के लिए मजबूर हो जाएंगे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा, मेरे पास महाराष्ट्र का कुछ अनुभव है। आप देशभर में इस हिंसा को मत फैलाइए। दरअसल, ED ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी बीएम पार्वती को MUDA केस में समन भेजा था। कर्नाटक हाईकोर्ट ने मार्च में यह समन रद्द कर दिया था। ED ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने आखिर में ED की अपील खारिज कर दी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने दो स्तरों पर स्पष्ट न्यायिक निष्कर्षों के बावजूद मामलों को आगे बढ़ाने के लिए ईडी की आलोचना की। उन्होंने चेतावनी दी कि ईडी को राजनीतिक मंच के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सीनियर वकीलों को नोटिस
शीर्ष अदालत को यह बताया गया था कि वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार जैसे बड़े नामों को हाल में ईडी द्वारा नोटिस जारी किया गया और इससे कानून के पेशे पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा, इस संबंध में दिशानिर्देश तैयार किए जाने चाहिए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इस मुद्दे को उच्चतम स्तर पर उठाया गया है और जांच एजेंसी को वकीलों को कानूनी सलाह देने के लिए नोटिस जारी नहीं करने के लिए कहा गया है। सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि वकीलों को कानूनी सलाह देने के लिए तलब नहीं किया जा सकता। हालांकि, उन्होंने कहा कि झूठे विमर्श गढ़कर संस्थानों को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
वकीलों का तर्क
वकीलों ने जोर देकर कहा कि वकीलों को खासकर विधि संबंधी राय देने के लिए तलब करना एक खतरनाक नजीर तय कर रहा है। एक वकील ने कहा कि अगर यह जारी रहा तो यह वकीलों को ईमानदार और स्वतंत्र सलाह देने से रोकेगा। उन्होंने कहा कि जिला अदालतों के वकीलों को भी बेवजह परेशान किया जा रहा है। अटॉर्नी जनरल ने चिंताओं को स्वीकार किया और कहा कि जो हो रहा है वह निश्चित रूप से गलत है। प्रधान न्यायाधीश ने इस पर कहा कि अदालत भी इस तरह की रिपोर्ट से हैरान है। हालांकि, सॉलिसिटर जनरल ने मीडिया की खबरों के आधार पर राय बनाने के ख़िलाफ आगाह किया। विधि अधिकारी ने कहा कि संस्थाओं को निशाना बनाने की एक सुनियोजित कोशिश चल रही है। कृपया साक्षात्कारों और खबरों पर भरोसा नहीं करें। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
प्रधान न्यायाधीश का तर्क
प्रधान न्यायाधीश पिछले सप्ताह अस्वस्थ रहने के कारण अदालती कार्यवाहियों से दूर थे। उन्होंने कहा कि हम खबरें नहीं देखते, न ही यूट्यूब पर इंटरव्यू देखते हैं। पिछले हफ्ते ही मैं कुछ फिल्में देख पाया। जब सॉलिसिटर जनरल ने घोटालों में आरोपी नेताओं द्वारा जनमत को प्रभावित करने का प्रयास किए जाने का जिक्र किया, तो प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि हमने कहा था…इसका राजनीतिकरण नहीं करें। मेहता ने कहा कि जैसे ही मैंने श्री दातार के बारे में सुना, इसे तत्काल सर्वोच्च कार्यपालक अधिकारी के संज्ञान में लाया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी से संबंधित मामला
ईडी ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ अपील दायर की थी, जिसमें मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी बी.एम. पार्वती और राज्य के शहरी विकास मंत्री बिरथी सुरेश के खिलाफ धन शोधन के आरोपों को खारिज किया गया था। यह मामला मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) द्वारा कथित अनियमित भूमि आवंटन से संबंधित है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने 7 मार्च 2025 को निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा, जिसमें ईडी की कार्यवाही को खारिज कर दिया गया था। मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने दो स्तरों पर स्पष्ट न्यायिक निष्कर्षों के बावजूद मामले को आगे बढ़ाने के लिए ईडी की आलोचना की। उन्होंने कहा कि आप अच्छी तरह जानते हैं कि एकल न्यायाधीश ने निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखा था। मतदाताओं के बीच राजनीतिक लड़ाई लड़ी जाए। इसके लिए आपका इस्तेमाल क्यों किया जा रहा है? (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
मुख्य न्यायाधीश ने कड़ी चेतावनी देते हुए कहा, “दुर्भाग्य से, मुझे महाराष्ट्र में ईडी के साथ कुछ अनुभव है। कृपया हमें कुछ कहने के लिए मजबूर न करें, वरना हमें ईडी के बारे में कठोर टिप्पणियाँ करनी पड़ेंगी। ईडी की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एस.वी. राजू ने अपील वापस लेने की पेशकश की और अनुरोध किया कि इसे मिसाल न माना जाए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
मुख्य न्यायाधीश ने अपील वापस लेने को स्वीकार करते हुए कहा कि हमें एकल न्यायाधीश के तर्क में कोई त्रुटि नहीं दिखती। मामले के विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए, हम इसे खारिज करते हैं। एएसजी, कुछ कठोर टिप्पणियाँ करने से बचने के लिए हम आपको धन्यवाद देते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सुप्रीम कोर्ट ने ईडी से सवाल किया कि उसका उपयोग राजनीतिक लड़ाइयों के लिए क्यों किया जा रहा है। कोर्ट ने मामले को खारिज करते हुए कहा कि हमें एकल न्यायाधीश के दृष्टिकोण में कोई त्रुटि नहीं दिखती। यह मामला प्रवर्तन निदेशालय बनाम पार्वती | एसएलपी (सीआरएल) संख्या 9384/2025 और प्रवर्तन निदेशालय बनाम बी.एस. सुरेश डायरी संख्या 33249/2025 के रूप में दर्ज है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इस बात पर वकीलों को ईडी की नोटिस
दूसरा मामला सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वतः संज्ञान में लिया गया था, जो मुवक्किलों को सलाह देने के लिए वकीलों को जारी किए गए ईडी नोटिसों से संबंधित था। सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (एससीएओआरए), सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) और इन-हाउस लॉयर्स एसोसिएशन सहित विभिन्न कानूनी संगठनों ने हस्तक्षेप याचिकाएँ दायर की थीं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने कहा कि ईडी के अधिकारी सारी हदें पार कर रहे हैं और इसे रोकने के लिए दिशानिर्देशों की आवश्यकता है। उन्होंने वकीलों को समन जारी करने पर ईडी की खिंचाई की। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और एएसजी एस.वी. राजू को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, “हमें दिशानिर्देश तय करने की आवश्यकता है। यह ऐसे नहीं चल सकता। ईडी के अधिकारी सभी सीमाएँ लाँघ रहे हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया की पीठ “मामलों की जाँच के दौरान कानूनी सलाह देने वाले या पक्षों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों को बुलाने” से संबंधित स्वतः संज्ञान मामले की सुनवाई कर रही थी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
हाल ही में, ईडी द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ताओं अरविंद दातार और प्रताप वेणुगोपाल को उनकी कानूनी सलाह के लिए समन जारी करने की कार्रवाई से व्यापक आक्रोश फैला था। बार एसोसिएशनों के विरोध के बाद, ईडी ने समन वापस ले लिया और एक परिपत्र जारी किया कि निदेशक की पूर्व अनुमति के बिना वकीलों को समन जारी नहीं किया जाएगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने कहा कि ऐसी कार्रवाइयों का कानूनी व्यवहार पर “घबराहट भरा प्रभाव” पड़ता है। उन्होंने तुर्की और चीन का उदाहरण देते हुए कहा कि हमने तुर्की में देखा कि पूरी बार एसोसिएशन को भंग कर दिया गया। हमें इस दिशा में नहीं जाना चाहिए। दिशानिर्देश तय किए जाने चाहिए। मुख्य न्यायाधीश ने सहमति जताते हुए कहा कि अगर वकील की सलाह गलत भी हो, तो उसे तलब कैसे किया जा सकता है? यह विशेषाधिकार प्राप्त संचार है। दिशानिर्देश तय किए जाने चाहिए। कोर्ट ने हस्तक्षेप याचिकाओं को समेकित करने के लिए एक न्यायमित्र नियुक्त करने और अगले सप्ताह सुनवाई करने का निर्णय लिया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि ईडी के खिलाफ नकारात्मक कहानी गढ़ने की “सुनियोजित कोशिश” हो रही है। हालांकि, मुख्य न्यायाधीश ने जवाब दिया, “हम कई मामलों में ऐसा देख रहे हैं। उच्च न्यायालय के सुविचारित आदेशों के बाद भी ईडी बार-बार अपील दायर कर रहा है। हमारे पास अखबार और यूट्यूब देखने का समय नहीं है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सुनवाई के दौरान यह सामने आया कि वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार को स्पेन में रहते हुए समन मिला था, जिससे उन्हें मानसिक परेशानी हुई। सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि समन छह घंटे के भीतर वापस ले लिया गया। मेहता ने गुजरात के एक मामले का उल्लेख किया, जहाँ एक व्यक्ति ने कथित तौर पर वकील से हत्या छिपाने की सलाह माँगी थी। मुख्य न्यायाधीश ने जवाब दिया कि यह आपराधिक मामला है। यह अलग बात है। वकील को बुलाने से पहले अनुमति लेनी होगी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
मुख्य न्यायाधीश ने दोहराया कि कृपया अदालत को राजनीतिक मंच न बनाएँ। हमें ईडी के बारे में कठोर टिप्पणियाँ करने के लिए मजबूर न करें। इस वायरस को देशभर में न फैलाएँ। कोर्ट ने स्वतः संज्ञान मामले में नोटिस जारी किया और अगले सप्ताह विस्तृत सुनवाई निर्धारित की। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ममता बनर्जी के खिलाफ आपराधिक अवमानना की मांग
तीसरे मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खिलाफ आपराधिक अवमानना की मांग वाली याचिका पर सुनवाई की। मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया की पीठ ने शिक्षक भर्ती घोटाला मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर ममता बनर्जी की टिप्पणियों को लेकर आपराधिक अवमानना शुरू करने की माँग वाली याचिका पर विचार किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
आत्मदीप नामक सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट ने यह याचिका दायर की थी। वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह ने मामले को स्थगित करने का अनुरोध किया, क्योंकि आपराधिक अवमानना याचिका शुरू करने के लिए अटॉर्नी जनरल की सहमति हेतु अनुरोध दायर किया गया था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
मुख्य न्यायाधीश ने टिप्पणी की कि क्या आपको इतना यकीन है कि सहमति मिल जाएगी? अदालत के सामने राजनीतिकरण न करें। अपनी राजनीतिक लड़ाई कहीं और लड़ें। पीठ ने मामले को चार सप्ताह बाद सूचीबद्ध करने का निर्णय लिया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
अप्रैल 2025 में, तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा, जिसमें 2016 में पश्चिम बंगाल विद्यालय सेवा आयोग (एसएससी) द्वारा की गई लगभग 25,000 शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्तियों को अमान्य करार दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के निष्कर्ष को स्वीकार किया कि चयन प्रक्रिया धोखाधड़ी से दूषित थी और इसे सुधारा नहीं जा सकता था। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि ममता बनर्जी ने इस फैसले पर आपत्तिजनक टिप्पणियाँ की थीं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
हम याचिका खारिज करते हैं
CJI बी आर गवई ने कहा कि राजनीतिक लड़ाई मतदाताओं के सामने लड़ें. ये क्या है? हम याचिका खारिज करते हैं। बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्या के खिलाफ दाखिल कर्नाटक सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा था। कर्नाटक सरकार ने हाईकोर्ट के उस आदेश को सुप्रीम कोर्ट मे चुनौती दी थी, जिसमे हाईकोर्ट ने तेजस्वी सूर्या के खिलाफ दर्ज FIR को रद्द करने का आदेश दिया था। तेजस्वी सूर्या पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने हावेरी जिले में एक किसान की आत्महत्या के संबंध में झूठी सूचना फैलाई थी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने MUDA घोटाला में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती को बड़ी राहत दी। पार्वती के खिलाफ जारी ED के समन रद्द करने का फैसला बरकरार रखा गया। सुप्रीम कोर्ट ने फिर से कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश में दखल देने से इनकार किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ईडी के बारे में कुछ बहुत कठोर कहना पड़ेगा
सुप्रीम कोर्ट ने ED को लगाई फटकार, कहा, राजनीतिक लड़ाई मतदाताओं के सामने लड़ी जाए। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने कहा कि दुर्भाग्य से मुझे महाराष्ट्र में कुछ अनुभव है। हमें कुछ कहने के लिए मजबूर न करें। वरना हमें प्रवर्तन निदेशालय के बारे में कुछ बहुत कठोर कहना पड़ेगा। मतदाताओं के बीच ये राजनीतिक लड़ाई लड़ी जाए। इसके लिए आपका इस्तेमाल क्यों किया जा रहा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
अर्जी वापस लेने की बात
इस दौरान ED के लिए ASG एसवी राजू ने कहा कि ठीक है, हम अपनी अर्जी वापस ले लेंगे, लेकिन इसे मिसाल न माना जाए। CJI गवई ने टोका और कहा कि हमें एकल न्यायाधीश के दृष्टिकोण में अपनाए गए तर्क में कोई त्रुटि नहीं दिखती। विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए हम इसे खारिज करते हैं. कुछ कठोर टिप्पणियों से बचने के लिए हमें ASG का धन्यवाद करना चाहिए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
दरअसल, हाईकोर्ट से मिली राहत के खिलाफ दाखिल ईडी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा था। हाईकोर्ट ने पार्वती के खिलाफ जारी ED के समन को रद्द कर दिया था। मैसूर अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी (MUDA) द्वारा प्लॉट आवंटन के मामले में ED ने पार्वती को पूछताछ के लिए समन भेजा था, जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है। हाईकोर्ट मे पार्वती की ओर से दलील दी गई थी कि उन्होंने सभी 14 प्लॉट को सरेंडर कर दिया था और उनके पास न तो कोई ‘तथाकथित अपराध आय’ थी और न ही वे इसका उपभोग कर रही थीं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
तीसरा मामला पश्चिम बंगाल शिक्षक भर्ती घोटाला मामले में राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खिलाफ दायर अवमानना याचिका का था। सुप्रीम कोर्ट ने फिर टिप्पणी की कि राजनीतिक लड़ाई कोर्ट के बाहर लड़ी जानी चाहिए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने चार हफ्ते के लिए सुनवाई टाली। इस दौरान याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील मनिंदर सिंह ने कहा कि हमने अटॉर्नी जनरल से सहमति मांगी है. मामला बाद में भी विचाराधीन रह सकता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ऐसे मामलों का राजनीतिकरण न करें
CJI बीआर गवई ने कहा कि क्या आपको इतना यकीन है कि आपको सहमति मिल जाएगी? हमें इसे अभी खारिज कर देना चाहिए। ऐसे मामलों का राजनीतिकरण न करें। राजनीतिक लड़ाइयां अदालत के बाहर लड़ी जाती हैं। 4 हफ़्ते बाद सुनवाई करेंगे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
गौरतलब है कि आत्मदीप संस्था की ओर से दायर याचिका में आरोप लगाया है कि इस मामले में करप्शन को देखते हुए शिक्षकों की नियुक्ति को रद्द करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश की ममता सरकार अवहेलना कर रही है। यचिका में कहा गया है कि 7 अप्रैल को दिए अपने भाषण में ममता बनर्जी ने कई ऐसी बाते कही जो सुप्रीम कोर्ट की गरिमा को कम करने वाली है। यही नहीं, ममता बनर्जी ने SC के आदेश को धता बताते हुए पद से हटाए ग्रुप सी और ग्रुप डी के कर्मियों को मासिक वेतन देने की पॉलिसी भी बनाई है।
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Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।