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July 31, 2025

देखें वीडियोः सुरंग में 41 जिंदगी बचाने को संघर्ष, नवें दिन पका भोजन हुआ नसीब, दसवें दिन सामने आई श्रमिकों की तस्वीरें

उत्तराखंड के उत्तरकाशी में निर्माणाधीन सिलक्यारा टनल में 41 मजदूरों के फंसने की घटना को अब पूरे दस दिन हो चुके हैं। इस बीच बड़ी खबर ये है कि सुरंग में फंसे श्रमिकों तक एंडोस्कोपिक फ्लेक्सी कैमरा पहुंचा दिया गया है। साथ ही भीतर की तस्वीरें सामने आ गई हैं। श्रमिकों को बाहर निकालने में अब तक किए गए प्रयोग विफल साबित हुए हैं। मलबा ज्यादा होने और ऊपर से मिट्टी धंसने के कारण रेस्क्यू ऑपरेशन में दिक्कत आ रही है। हालांकि, शुरू से ही उन्हें कामचलाऊ खाद्य सामग्री, ऑक्सीजन, दवा आदि की सप्लाई जा रही रही थी। राहत की बात ये है कि सोमवार की सुबह सुरंग में छह इंची का पाइप करीब 51 मीटर की दूरी तक पहुंचाया गया। इसके बाद इसकी सफाई आदि कर इसके जरिये प्लास्टिक की बोतलों में खिचड़ी भरकर श्रमिकों को भेजी गई। जीवन के लिए संघर्ष कर रहे इन मजदूरों तक सॉलिड फूड पहुंचाने में नवें दिन कामयाबी मिली। इतने दिनों से अच्छे से खाना नहीं मिल पाने से श्रमिक भी कमजोर हो चुके हैं। उम्मीद है कि आज मंगलवार से दस दिन बाद सुरंग में फंसे श्रमिकों को सोया बड़ी, मटर युक्त मूंग की दाल की खिचड़ी और केला खाने को मिलेगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

तीसरे प्रयास में मिली सफलता
छ: इंच मोटे पाइप को डालने के लिए एनएचआईडीसीएल ने तीन बार प्रयास किए हैं। तीसरा प्रयास सफल रहा है। श्रमिकों तक लाइफ लाइन बनाने का कार्य पिछले 5 दिनों से चल रहा था। पहला प्रयास में पाइप केवल 33 मीटर तक ही सुरंग में भूस्खलन के मलबे में डाला और किसी कठोर चट्टान या मेटल से टकराया। फिर रेस्क्यू टीम ने पाइप का एलाइनमेंट बदला और दूसरा पाइप भूस्खलन के मलबे के बीच डालना शुरू किया, लेकिन रविवार की रात को 57 मीटर पाइप मलबे में ड्रिल हुआ, जो सुरंग के तल के बजाय सुरंग की छत की ओर बढ़ा। सोमवार सुबह तीसरे प्रयास में पाइप सही स्थान पर पहुंचा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

 

अब मिलेगी सही डाइट
एनएचआईडीसीएल के निदेशक अंशु मनीश खलखो ने मीडिया को बताया कि सुरंग के भीतर सभी मजदूर सुरक्षित हैं। पुराने पाइप से केवल चने, नमक, दवाइयां, टॉफी, चॉकलेट आदि ही भेज पा रहे थे। नए पाइप से उन्हें फल, अंडे सहित और अधिक खाद्य सामग्री भेजी जाएगी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

ड्रोन का किया गया इस्तेमाल
बताया जा रहा है कि मजदूरों की स्थिति देखने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया गया था, लेकिन भीतर अत्यधिक धूल होने से उसकी तस्वीरें साफ नहीं आ पाईं। सुरंग के बड़कोट की ओर के सिरे में सोमवार को काम शुरू नहीं हो पाया। यहां टीएचडीसी की आठ से 10 लोगों की टीम पहुंच गई है। यहां से दो से ढाई मीटर व्यास की सुरंग तैयार की जाएगी। वहीं, बड़ी खबर ये है कि मंगलवार की सुबह सुरंग के भीतर श्रमिकों की तस्वीरें सामने आ गई। इस बीच बड़ी खबर ये है कि सुरंग में फंसे श्रमिकों तक एंडोस्कोपिक फ्लेक्सी कैमरा पहुंचा दिया गया है।  (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

श्रमिकों की स्थिति का देखें वीडियो

दो रोबोट से भी जानी जाएगी वस्तुस्थिति
ऑपरेशन सिलक्यारा के तहत मंगलवार को विशेषज्ञों की टीम अत्याधुनिक तकनीकों का भी इस्तेमाल करेगी। इसके लिए जहां डीआरडीओ के दो रोबोट पहुंच चुके हैं, वहीं ड्रोन को भी नए सिरे से उड़ाया जाएगा। एनएचआईडीसीएल के निदेशक अंशु मनीश खलखो ने बताया, सुरंग के भीतर डीआरडीओ के दो रोबोट आए हैं, जिनमें एक 50 किलो और दूसरा 20 किलो का है। बताया, ड्रोन पहले दिन अच्छे नतीजे नहीं दे पाया। अब मंगलवार को फिर उड़ाया जाएगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

आज होंगे ये काम
-एसजेवीएन कंपनी की डि्ल मशीन सुरंग के ऊपर पहुंच जाएगी, जिसे इंस्टॉल करने में करीब 24 घंटे लगेंगे।
– आरवीएनएल कंपनी की डि्ल मशीन भी आज सुरंग के ऊपर जाएगी।
– सुरंग के भीतर ऑगर मशीन चलाने का काम दोबारा तेज किया जाएगा।
– रोबोट को चलाने का प्रयास किया जाएगा, ताकि मजदूरों तक पहुंच और आसान हो।
-सुरंग के दूसरे सिरे बड़कोट की ओर से भी काम तेज किया जाएगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

 

ये है घटनाक्रम
गौरतलब है कि जनपद उत्तरकाशी के यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर धरासू एवं बड़कोट के मध्य सिल्क्यारा के समीप लगभग 4531 मीटर लम्बी सुरंग का निर्माण हो रहा है। इसमें सिल्क्यारा की तरफ से 2340 मीटर तथा बड़कोट की तरफ से 1600 मीटर निर्माण हो चुका है। इसमें 12 नवम्बर 2023 की सुबह सिल्क्यारा की तरफ से लगभग 270 मीटर अन्दर लगभग 30 मीटर क्षेत्र में ऊपर से मलबा सुरंग में गिर गया था। इसमें 41 व्यक्ति फँस गए। उसी दिन से श्रमिकों को बाहर निकालने के लिए रेस्क्यू अभियान चल रहा है। हालांकि, अभी तक इसमें सफलता नहीं मिल पाई है।
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Bhanu Prakash

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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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