गोल्डन कार्ड के संबंध में राज्यकर्मियों ने राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण के समक्ष रखी ये मांग, पूरी न होने पर आंदोलन को चेताया
उत्तराखंड अधिकारी कर्मचारी, शिक्षक समन्वय समिति के प्रतिनिधिमंडल ने राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण से गोल्डन कार्ड के संबंध में राज्य सरकार की ओर से जारी किए गए संशोधित शासनादेश के अनुसार कार्रवाई सुनिश्चित करने की मांग की।
इस मौके पर समिति के प्रवक्ता अरुण पांडे ने बताया कि गोल्डन कार्ड संबंधी नये शासनादेश के अनुसार स्वास्थ्य प्राधिकरण की ओर से कई बिन्दुओं पर कार्यवाही की जानी है। ताकि कार्मिकों से काटी जा रही अनिवार्य धनराशि के अनुरूप उनको समस्त उचित उपचार व लाभ मिले सकें। इस मौके मांग पत्र के अनुसार कार्रवाई करने की मांग की गई।
ये हैं प्रमुख मांगे
1.प्रदेश एवं प्रदेश से बाहर समस्त उच्च कोटि के सम्पूर्ण सुविधायुक्त अस्पतालों से अनुबन्ध कर शीघ्र अतिशीघ्र योजना में सूचीबद्ध किया जाए।
2.शासनादेश के बिन्दु संख्या-19 के अनुरूप राज्य कार्मिकों/पेंशनरों को ओपीडी चिकित्सा में सुविधा प्रदान करने के लिए डॉयनोस्टिक सेन्टर एवं औषाधालय भी शीघ्र चिह्नित कर पंजीकृत किये जाएं। इससे निशुल्क जाचं एवं दवाईयों की सुविधा राज्य कार्मिकों/पेंशनरों एवं उनके परिवार को मिल सकें।
3.राज्य के पेंशनर्स यदि राज्य सरकार स्वास्थ्य योजना स्वीकार करने के लिए वर्तमान में शासन की वांछनानुसार अपना विकल्प देते है, तो उनसे अनिवार्य रूप से काटी जाने वाली धनराशि को 50 फीसद की सीमा तक कम किया जाए। क्योंकि कार्यरत एवं सेवानिवृत्त कार्मिकों के वेतन/पेंशन में अत्याधिक अन्तर होता है। इसलिये दोनों वर्गो के लिये कटौती समान रूप से रखना किसी भी दशा में न्यायोचित नही है।
4.अनुबन्ध किये गये अथवा किये जाने वाले समस्त सूचीबद्ध अस्पतालों में नए शासनादेश के अनुरूप बीमार व्यक्ति के अस्पताल में भर्ती होने की दशा में उसकी आवश्यकतानुसार उस अस्पताल में उपलब्ध समस्त उपचार निशुल्क करने के लिए अस्पतालों को स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी किये जाएं।
5.वर्तमान में लागू राज्य सरकार स्वास्थ्य योजना के अन्तर्गत मात्र एलोपैथिक अस्पतालों को ही सूचीबद्ध किया गया है। अतः आयुर्वेदिक/होमोपैथिक अस्पतालों को भी इसमे सम्मिलित करते हुए उच्च कोटि के सुविधायुक्त आयुर्वेदिक/होमोपैथिक अस्पतालों के साथ भी अनुबन्ध कर सूचीबद्ध किया जाए। क्योंकि प्रदेश में कई कार्मिक आयुर्वेदिक/होमोपैथिक पद्धति के अनुसार ही अपना इलाज कराते हैं।
6. शासनादेश के बिन्दु संख्या-15 के अनुसार ओपीडी अथवा अपरिहार्य परिस्थिति में गैर सूचीबद्ध अस्पताल में इलाज करने पर चिकित्सा प्रतिपूर्ति बीजक उपचार समाप्ति के छः माह के अन्तर्गत कार्यालयाध्यक्ष, विभागाध्यक्ष, प्रशासकीय विभाग, स्वीकृता अधिकारी को जैसा भी स्थिति हो, अनिवार्य रूप से जमा करने का प्राविधान है। विलम्ब की दशा में प्रतिपूर्ति दावा अस्वीकृत किये जाने की व्यवस्था है। संज्ञान में आ रहा है कि कार्मिक की ओर से उपचार समाप्ति के छः माह के अन्दर अपना बीजक अपने डीडीओ कार्यालयाध्यक्ष के यहां जमा करने पर भी बीजक को डीडीओ कार्यालयध्यक्ष स्तर से समस्त औपचारिकतायें पूर्ण करने तथा स्वीकृत करने के उपरान्त बीजक स्वास्थ्य प्राधिकरण को भेजने पर उसे बीजक भुगतान हेतु अपलोड करने की अवधि को छः माह से अधिक मानते हुये भुगतान नही किया जा रहा है। जो शासनादेश के विपरीत है। क्योंकि यह व्यवस्था पूर्व से स्पष्ट है कि बीजक सम्बन्धित डीडीओ, कार्यालयाध्यक्ष के यहां उपचार समाप्ति के छः माह के अन्दर अनिवार्य रूप से जमा करना होता है। कार्यालध्यक्ष स्तर पर जमा करने के उपरान्त यदि पत्राचार आदि में छः माह से अधिक समय भी लग जाता है तो उसका भुगतान नियमानुसार किया जाता रहा है, अतः ऐसे समस्त बीजकों का नियमानुसार शीघ्र भुगतान किया जाये।
ज्ञापन में कहा गया कि इसके अतिरिक्त शासनादेश के अनुरूप जिन-जिन बिन्दुओं पर स्वास्थ्य प्राधिकरण स्तर से क्रियान्वयन की कार्यवाही होनी है। उन पर तत्काल कार्यवाही की जाए। साथ ही जिन बिन्दुओं पर शासन स्तर से दिशा-निर्देश जारी किये जाने है, उनको शीघ्र शासन को सन्दर्भित करते हुए उक्त शासनादेश का शत-प्रतिशत पालन कराया जाए। यदि कार्मिकों से अनिवार्य रूप से काटी जा रही धनराशि के अनुरूप उनको समस्त चिकित्सा सुविधायें प्राथमिकता पर सूचीबद्ध अस्पतालों द्वारा प्रदान नही की जाती है, तो ऐसी स्थिति में पुनः प्रदेश स्तर पर संगठन को विरोध प्रदर्शन करने के लिए बाध्य होना पड़ सकता है। प्रतिनिधिमंडल में सुनील कोठारी, शक्ति प्रसाद भट्ट, पूर्णानन्द नौटियाल, पंचम बिष्ट, संदीप मौर्या, चौधरी ओमबीर सिहं एवं दीप चन्द बुडलाकोटी आदि कर्मचारी नेता शामिल थे।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।