श्रीलंका बिजली बोर्ड के अध्यक्ष का दावा, पीएम मोदी ने अडानी को काम दिलाने को डाला दबाव, पत्र आया सामने, अब बयान से मुकरे

इस बयान के सामने आने के बाद विवाद बढ़ता देख सीईबी अध्यक्ष अपने बयान से मुकर गए। वहीं पड़ोसी देश के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने भी इन आरोपों को ख़ारिज किया है। सीईबी अध्यक्ष के बयान ने भारत में विपक्षी दलों को पीएम मोदी को घेरने का एक मौका जरुर दे दिया है।
श्रीलंका के एक अधिकारी ने अपने दावे से पैदा हुए विवाद के बाद पद से इस्तीफा दे दिया। इस दावे में कहा गया है कि पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे पर दबाव बनाने के बाद श्रीलंका में एक ऊर्जा प्रोजेक्ट गौतम अडानी ग्रुप को दिया गया था। श्रीलंका के सीलोन इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड (सीईबी) के चेयरमैन एमएमसी फर्डिनांडो ने रविवार को उस दावे को वापस ले लिया, जिसमें कहा गया था कि राष्ट्रपति राजपक्षे ने उन्हें बताया था कि पीएम मोदी ने पावर प्रोजक्ट को सीधे अडानी ग्रुप को देने के लिए दबाव डाला था।
फर्डिनांडो ने शुक्रवार को एक संसदीय पैनल के समक्ष सुनवाई के दौरान यह दावा किया था। वहीं, एक लेटर सामने आया, जिससे पता चलता है कि श्रीलंका के मन्नार जिले में 500 मेगावाट की अक्षय ऊर्जा परियोजना में भारत सरकार भी शामिल थी। फर्डिनांडो की ओर से 25 नवंबर 2021 को लिखा गया यह लेटर, वित्त मंत्रालय के सचिव एसआर एटीगला को संबोधित है। पत्र में प्रधानमंत्री द्वारा, अडानी ग्रीन एजेंसी के प्रस्ताव को भारत सरकार की ओर से श्रीलंका सरकार के प्रस्ताव के रूप में मान्यता देने के निर्देश का हवाला दिया गया है। क्योंकि एफडीआई संकट का सामना करने के लिए दोनों देशों के प्रमुख श्रीलंका में इस निवेश के लिए सहमत हैं।
इसमें कहा गया है कि इस अधिकारी को राष्ट्रपति गोटाभाया के साथ 16 नवंबर की बैठक में अडानी ग्रीन एनर्जी को मन्नार और पुनारिन में 500MV पवन और सौर, नवीकरण पावर प्रोजेक्ट विकसित करने के लिए निर्देशित किया गया था। क्योंकि वह पहले ही श्रीलंका में एफडीआई (विदेशी विनिवेश) के लिए सहमत हो चुके हैं।
श्रीलंकाई चैनल न्यूज़फर्स्ट द्वारा साझा किए गए उनकी गवाही के एक वीडियो क्लिप के अनुसार, फर्डिनेंडो कहते हैं कि 24 नवंबर, 2021 को एक बैठक के बाद राष्ट्रपति ने मुझे बुलाया और कहा कि भारत के प्रधानमंत्री मोदी उन पर अडानी समूह को परियोजना सौंपने के लिए दबाव बना रहे हैं। वे समिति की अध्यक्ष और एक अन्य सदस्य द्वारा पूछे गए उन सवालों का जवाब दे रहे थे कि जिसमें पूछा गया था कि श्रीलंका के उत्तरी तट पर 500 मेगावाट का पवन ऊर्जा संयंत्र बनाने के लिए अडानी समूह को कैसे चुना गया। फर्डिनेंडो ने समिति को बताया कि उन्होंने राष्ट्रपति को सूचित किया कि मामला सीईबी से संबंधित नहीं है, बल्कि निवेश बोर्ड से संबंधित है।
फर्डिनेंडो ने कहा कि उन्होंने जोर देकर कहा कि मैं इसे देखूं। तब मैंने एक पत्र भेजा जिसमें ये जिक्र किया गया था कि राष्ट्रपति ने मुझे निर्देश दिया है और वित्त सचिव को ऐसा करना चाहिए। मैंने बताया कि यह एक सरकार का दूसरी सरकार से सौदा है। सुनवाई के दौरान पैनल की अध्यक्ष चरिता हेरथ ने पूछा कि क्या पवन ऊर्जा सौदे को ‘अवांछित’ माना जा सकता। इसके जवाब में फर्डिनेंडो ने कहा-हां, ये गवर्नमेंट टू गवर्नमेंट डील है, लेकिन कानून में दर्ज न्यूनतम लागत नीति के अनुसार बातचीत होनी चाहिए।
इसके एक दिन बाद राष्ट्रपति राजपक्षे ने उनके जवाब के उलट जाते हुए ऐसी कोई बात कहने से इनकार कर दिया। उन्होंने एक ट्वीट में कहा कि वे मन्नार में एक पवन ऊर्जा प्रोजेक्ट संबंधी सुनवाई में सीईबी के अध्यक्ष द्वारा दिए गए बयान से इनकार करते हैं। उन्होंने परियोजना को किसी विशिष्ट व्यक्ति या इकाई को देने को नहीं कहा था।
इसके बाद फर्डिनेंडो ने न्यूज़फर्स्ट से कहा कि उन्होंने अपना बयान वापस ले लिया है। चैनल के अनुसार, सीईबी प्रमुख को ‘शनिवार (11 जून) की सुबह एक मंत्री द्वारा इस बारे में पूछे जाने पर यह एहसास हुआ कि उन्होंने गलती से ऐसा बयान दे दिया।
शुक्रवार को सार्वजनिक सुनवाई हुई थी, जिससे एक दिन पहले संसद ने प्रतिस्पर्धी बोली लगाने के नियम को हटाने के लिए 1989 के इलेक्ट्रिसिटी कानून में संशोधन किया था। प्रमुख विपक्षी दल समागी जना बालवेगया (एसजेबी) ने आरोप लगाया कि कानून में संशोधन की प्रमुख वजह अडाणी समूह के साथ हुआ ‘अवांछित’ सौदा है। एसजेबी ने मांग की है कि 10 मेगावाट क्षमता से अधिक की परियोजनाओं के लिए प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया होनी चाहिए।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।