छठ पूजा का दूसरा दिन, खरना आज, जाने शुभ मुहूर्त, पूजन के नियम और विधि, दून में बनाई कृत्रिम झील
छठ पूजा 2022 खरना तिथि
छठ पूजा का चार दिवसीय उत्सव दीवाली के छह दिन बाद यानी कार्तिक महीने के छठे दिन पड़ता है। छठ पूजा को षष्ठी, छठ, छठ पर्व, डाला पूजा और डाला छठ के नाम से भी जाना जाता है। जो नहाय खाय से शुरू होती है और उषा अर्घ्य (डूबते सूर्य को अर्घ्य) के साथ समाप्त होती है। छठ के दूसरे दिन को खरना कहा जाता है। आज यानि कि 29 अक्टूबर को पूजा का दूसरा दिन है। इसे खरना कहते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
छठ के दौरान, व्रती महिलाएं एक कठिन निर्जला व्रत रखती हैं और भक्त अपने परिवार और बच्चों की भलाई, विकास और समृद्धि के लिए भगवान सूर्य (सूर्य देव) और छठी माता से प्रार्थना करते हैं। छठ भारत में बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश राज्यों के लिए अद्वितीय है और नेपाल में भी मनाया जाता है। हालांकि परंपराओं के अनुसार महिलाएं छठ व्रत रखती हैं। पुरुष भी इसे कर सकते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
दून में बनाई कृत्रिम झील, पूर्व विधायक ने किया निरीक्षण
देहरादून में तेग बहादुर सिंह रोड पर पूर्व विधायक राजकुमार के प्रयासों से छठ पूजा के लिए कृत्रिम झील बनाने का कार्य चल रहा है। यहां हर बार छठ पूजन के लिए इस तरह की झील का निर्माण किया जाता है। पूर्व विधायक एवं कांग्रेस नेता राजकुमार ने आज मौके पर निरीक्षण किया। साथ ही उन्होंने प्रदेशवासियों को छठ की बधाई दी। उन्होंने कहा कि त्योहार हमें आपस में जोड़ते हैं। इसलिए त्योहारों को मिलजुलकर आपसी सदभाव से मनाना चाहिए।
छठ पूजा 2022 खरना तिथि का मुहूर्त
छठ का दूसरा दिन खरना है। इस साल खरना 29 अक्टूबर, शनिवार को यानी आज है। द्रिक पंचांग के अनुसार चतुर्थी सुबह 08 बजकर 13 मिनट शुरू है। वहीं पंचमी तिथि 30 अक्टूबर को सुबह 05 बजकर 49 मिनट से शुरू है। ब्रह्म मुहूर्त सुबह 04 बजकर 48 मिनट से 05 बजकर 39 मिनट तक है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सूर्योदय और सूर्यास्त का समय
द्रिक पंचांग के अनुसार खरना के दिन 29 अक्टूबर को सुबह 06:31 बजे सूर्योदय होगा। वहीं इस दिन सूर्यास्त शाम 05 बजकर 30 मिनट पर होगा। इसके साथ ही इस दिन सूर्य देव तुला राशि में विराजामान हैं। इसके अलावा इस दिन राहुकाल सुबह 9 बजकर 18 मिनट से 10 बजकर 41 मिनट तक है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
खरना पूजा नियम और विधि
खरना के दिन छठ व्रती जल्दी उठती हैं और गुड़ और अरवा चावल से बनी गुड़ की खीर का प्रसाद तैयार करती हैं। पूजा के दौरान भक्त मौसमी फलों और सब्जियों को प्रसाद के रूप में भी इस्तेमाल करते हैं। शाम के समय परिवार के सदस्य पहले इस प्रसाद को ग्रहण करते हैं। उसके बाद भोजन करते हैं। खरना के अगले दिन संध्याकालीन अर्घ्य यानी डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इस दिन व्रती सूर्योदय से सूर्यास्त तक एक कठिन निर्जला व्रत (पानी की एक बूंद के बिना उपवास) का भी पालन करते हैं और डूबते हुए सूर्य को छठ का पहला अर्घ्य देते हैं। भक्त सूर्य देव को प्रसाद चढ़ाने के बाद ही अपना उपवास तोड़ सकते हैं। इसी दिन से 36 घंटे तक चलने वाला निर्जला व्रत शुरू होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, व्रत रखने वाला व्यक्ति पूरा प्रसाद बनाकर पहले सूर्य देव और छठी मैया को अर्पित करता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
छठ पूजा खरना के दिन प्रसाद
भक्त छठ के दूसरे दिन खरना पर एक विशेष प्रसाद तैयार करते हैं, जिसे गुड़ (गुड़) की खीर का प्रसाद कहा जाता है। वे इस प्रसाद को तैयार करने के लिए गुड़, दूध और अरवा चावल का उपयोग करते हैं। प्रसाद के रूप में इस खीर को विशेष माना जाता है। खरना का प्रसाद व्रती महिलाएं आम की लकड़ी और मिट्टी के चूल्हे पर बनाया जाता है। खरना के प्रसाद को बेहद नियम और निष्ठा के साथ बनाया जाता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
रामायण से मान्यता
एक मान्यता के अनुसार लंका विजय के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया और सूर्यदेव की आराधना की। सप्तमी को सूर्योदय के समय पुनः अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
महाभारत से
एक अन्य मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्यदेव की पूजा शुरू की। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। वह प्रतिदिन घण्टों कमर तक पानी में ख़ड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य देते थे। सूर्यदेव की कृपा से ही वे महान योद्धा बने थे। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही पद्धति प्रचलित है। कुछ कथाओं में पांडवों की पत्नी द्रौपदी द्वारा भी सूर्य की पूजा करने का उल्लेख है। वे अपने परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना और लम्बी उम्र के लिए नियमित सूर्य पूजा करती थीं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पुराणों से मान्यता
एक कथा के अनुसार राजा प्रियवद को कोई संतान नहीं थी, तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनायी गयी खीर दी। इसके प्रभाव से उन्हें पुत्र हुआ परन्तु वह मृत पैदा हुआ। प्रियवद पुत्र को लेकर श्मशान गये और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त ब्रह्माजी की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई और कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूँ। हे! राजन् आप मेरी पूजा करें तथा लोगों को भी पूजा के प्रति प्रेरित करें। राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी।
नोटः यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं पर आधारित है। वैज्ञानिक और धार्मिक दृष्टि से लोकसाक्ष्य इसकी पुष्टि नहीं करता है।
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भानु बंगवाल
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।