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December 14, 2024

यूक्रेन पर रूसी हमले से भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा असर, शेयर मार्केट हुआ धड़ाम, बढ़ेगी पेट्रो पदार्थों की कीमत, होगी महंगाई

यूक्रेन पर रूसी हमले की घोषणा का असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी पड़ने जा रहा है। गुरुवार को घरेलू बाजार धड़ाम हो गया है। साथ ही पेट्रो पदार्थों की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ने लगी है।

यूक्रेन पर रूसी हमले की घोषणा का असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी पड़ने जा रहा है। गुरुवार को घरेलू बाजार धड़ाम हो गया है। साथ ही पेट्रो पदार्थों की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ने लगी है। ऐसे में भारत में भी इसका असर पड़ेगा। फिलहाल देश पांच राज्यों के चुनाव के मद्देनजर पेट्रोल और डीजल के दाम पिछले काफी समय से स्थित हैं। माना जा रहा है कि सात मार्च को अंतिम चरण का मतदान होने के बाद इनकी कीमतों में जबरदस्त उछाल आएगा। इसके साथ ही महंगाई आसमान छूने लगेगी।
शेयर बाजार में दिखा जबरदस्त असर
रूस के यूक्रेन में सैन्य अभियान शुरू करने की घोषणा के बाद भारत में भी वैश्विक शेयर बाजारों में भारी बिकवाली का असर दिखा। दोनों ही बेंचमार्क इंडेक्स में जबरदस्त गिरावट देखी गई। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन में सैन्य कार्रवाई का आदेश दे दिया। इसके साथ ही यूक्रेन में रूस का हमला शुरू हो गया है। इसके चलते शेयर बाजार तेजी से लुढ़के। आज गुरुवार को शुरुआती कारोबार में बीएसई सेंसेक्स में 2,000 से ज्यादा अंकों की गिरावट दर्ज की गई। इसके अलावा इस संकट का असर भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ने की आशंका जताई जा रही है।
एशियाई बाजारों में भी गिरावट
बता दें कि शुरुआती कारोबार में सेंसेक्स 1,461 अंक टूटकर 55,770 पर आया था। वहीं, निफ्टी 430 अंक फिसलकर 16,633 पर आया, लेकिन रूसी हमले की खबर के चलते निवेशक सतर्क हो गए और बाजार ने तेज गिरावट देखी। शुरुआती कारोबार में सेंसेक्स के सभी शेयर भारी नुकसान के साथ कारोबार कर रहे थे. सबसे अधिक नुकसान वाले शेयरों में एयरटेल, इंडसइंड बैंक, टेक महिंद्रा और एसबीआई शामिल थे। एशियाई बाजारों में जबरदस्त गिरावट नजर आई। जापान का निक्केई 2.17 फीसदी गिर गया. साउथ कोरिया के कॉस्पी ने सुबह 2.66 फीसदी की गिरावट देखी। शंघाई कॉम्पोजिट इंडेक्स में 0.89 फीसदी की गिरावट दिखी।
क्रूड तेल आठ साल में पहली बार 100 डॉलर के पार
यूक्रेन-रूस संकट को देखते हुए ब्रेंट क्रूड तेल आठ साल में पहली बार बढ़कर 100 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल हो गया। शेयर बाजार के अस्थाई आंकड़ों के मुताबिक विदेशी संस्थागत निवेशकों ने बुधवार को 3,417.16 करोड़ रुपये के शेयर बेचे। भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को कहा था कि रूस-यूक्रेन तनाव का असर अभी भारतीय व्यापार पर नहीं पड़ा है। इस वैश्विक तनाव की वजह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल की बढ़ती क़ीमत भारत की अर्थव्यवस्था के लिए चुनौतीपूर्ण है।
इस कारण बढ़ेंगी और कीमतें
भारत 85 फ़ीसदी तेल आयात करता है, जिसमें से ज़्यादातर आयात सऊदी अरब और अमेरिका से होता है। इसके अलावा भारत, इराक, ईरान, ओमान, कुवैत, रूस से भी तेल लेता है। दुनिया में तेल के तीन सबसे बड़े उत्पादक देश सऊदी अरब, रूस और अमेरिका हैं। दुनिया के तेल का 12 फ़ीसदी रूस में, 12 फ़ीसदी सऊदी अरब में और 16-18 फ़ीसदी उत्पादन अमेरिका में होता है। अगर इन तीन में से दो बड़े देश युद्ध जैसी परिस्थिति में आमने-सामने होंगे, तो जाहिर है इससे तेल की सप्लाई विश्व भर में प्रभावित होगी। ये कारण ही तेल की कीमतें बढ़ने के पीछे की सबसे बड़ी वजह है।
महंगाई पर भी असर
तेल की कीमतों का सीधा असर महँगाई से भी है। डीजल-पेट्रोल के बढ़ते दाम, साग सब्ज़ी और रोज़मर्रा की चीज़ों की कीमतों पर सीधे असर करते है। इसी बात की चिंता भारत को सता रही है। पिछले डेढ़ महीने से भारत में तेल और पेट्रोल की कीमतें नहीं बढ़ी हैं। इसका एक कारण चुनाव भी है। परंतु इस डेढ़ महीने में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल के दाम 15 से 17 फ़ीसदी बढ़ चुके हैं। ऐसे में जब कभी भारत में तेल की कीमतें रिवाइज़ होंगी, तो एक साथ 6-10 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी भी देखी जा सकती है।
प्राकृतिक गैस की कीमत पर भी होगा असर
भारत की कुल ईंधन खपत में प्राकृतिक गैस की हिस्सेदारी लगभग 6 प्रतिशत है और इस 6 फ़ीसदी का 56 फ़ीसदी, भारत आयात करता है। ये आयात मुख्यत: क़तर, रूस,ऑस्ट्रेलिया, नॉर्वे जैसे देशों से होता है। कुएं से पहले गैस निकाली जाती है, फिर उसे तरल किया जाता है और फिर समुद्री रास्ते से ये गैस भारत पहुँचती है। इस वजह से इसे लिक्विफाइड नेचुरल गैस यानी एलएनजी कहा जाता है। भारत लाकर इसे पीएनजी और सीएनजी में परिवर्तित किया जाता है। फिर इसका इस्तेमाल कारखानों, बिजली घरों, सीएनजी वाहनों और रसोई घरों में होता है।
रूस-यूक्रेन संकट के बीच एलएनजी की कीमतों में भी बढ़ोतरी देखने को मिली है। रूस, पश्चिम यूरोप प्राकृतिक गैस का बड़ा निर्यातक है। इसी क्षेत्र में सारी पाइप लाइन बिछी हुई हैं। दोनों देशों के बीच युद्ध के बीच अब आशंका है कि बमबारी में सप्लाई बाधित ना हो जाए। इसी आशंका की वजह से एलएनजी की कीमतें बढ़ रही है। हालांकि एलएनजी की कीमतों में उतनी तेजी नहीं आई है, जितनी तेल की कीमतों में। इसकी एक वजह ये है कि एलएनजी की कीमतें क्षेत्रीय बाज़ार में तय होती हैं ना कि अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में। भारत का जिन देशों के साथ एलएनजी कॉन्ट्रैक्ट है वो लंबे समय के लिए है और कीमतें कई सालों के लिए पहले से तय है।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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