ललित मोहन रयाल की पुस्तक ‘चाकरी चतुरंग’ की समीक्षा, समीक्षक-डॉ. सन्तोष मिश्र

वरिष्ठ लेखक प्रियदर्शन द्वारा पुस्तक के फ्लैप पर की गयी टिप्पणी काबिलेगौर है। वे लिखते हैं कि ललित मोहन रयाल की यह पुस्तक चाकरी चतुरंग भारतीय दफ्तरशाही का कच्चा चिट्ठा है। अफसरों और बाबुओं से भरे भारत के सरकारी दफ्तरों की दुनिया अपने आप में एक अजूबा है। वहां जितनी धूल है, उतने ही फूल हैं, वहां जितनी हलचल है, उतने ही ठहराव हैं, वहां जितनी गंभीरता है, उतनी ही अगंभीरता भी। इन दफ्तरों के बिना हिंदुस्तान का कामकाज नहीं चलता– भले ही वे रुके हुए से दिखें। दफ्तरों के बेशुमार किस्से इस किताब में मौजूद हैं।
खास बात यह है कि यह सारे किस्से उस लेखक द्वारा लिखे गए हैं, जिसने इस पूरी प्रक्रिया को बहुत करीब से देखा ही नहीं है, वरन बहुत हद तक उसमें शामिल भी रहा है। यह बात किताब की पठनीयता बढ़ाती है और प्रामाणिकता भी। यह किताब पारंपरिक अर्थों में उपन्यास नहीं है, लेकिन इसे पढ़ते हुए उपन्यास का सा ही सुख मिलता है। अलग-अलग किरदारों की छोटी-छोटी कहानियां मिलकर एक महावृतांत बनाती हैं जिसे एक बहुत रोचक शैली और समृद्ध भाषा एक अतिरिक्त जीवंतता प्रदान करती है। इसे पढ़ते हुए भारतीय दफ्तरों को और करीब से देखने और उसकी मार्फ़त भारतीय मनोविज्ञान को समझने में मदद मिलती है। यह एक अलग तरह की किताब है, जिसे पढ़ा ही जाना चाहिए।
पुस्तक की भूमिका में कवि, कथाकार अमित श्रीवास्तव लिखते हैं कि व्यवस्था के नानाविध अंग-रंग, चाल-ढंग, भाव-भंग को संतुलित किंतु चुटीले अंदाज में परखते ललित मोहन रयाल के इस उपन्यास चाकरी चतुरंग का साहित्य जगत में स्वागत किया जाना चाहिए। चाकरी चतुरंग पुस्तक अनामिका प्रकाशन से प्रकाशित है। जिसका मूल्य 395 है।
पुस्तक लेखक का परिचय
नाम- ललित मोहन रयाल
गद्य श्री सहित कई सम्मानों, अलंकरणों से विभूषित साहित्यकार ललितमोहन रयाल वर्तमान में उत्तराखंड शासन के शहरी निकाय विभाग के निदेशक पद पर कार्यरत हैं।
जन्म– बीसवीं शताब्दी के सातवें दशक के मध्य में टिहरी गढ़वाल के सुदूरवर्ती अंचल में
शिक्षा– एमएससी (गणित)
पूर्व में प्रकाशित तीन पुस्तकें
1. खड़कमाफी की स्मृतियों से – 2018
2. अथश्री प्रयाग कथा-2019
3. कारि तू कब्बि ना हारि-2021
पुस्तक समीक्षक का परिचय
डॉ. सन्तोष मिश्र
प्राध्यापक, हिन्दी विभाग,
एमबीपीजी कॉलेज, हल्द्वानी, जिला नैनीताल, उत्तराखंड।
Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।