पर्यावरण दिवस पर संकल्पः शिक्षक श्याम लाल भारती की कविता

पर्यावरण दिवस मना तो रहे आज
पर क्या सुरक्षित है यहां पर्यावरण
फिर क्यों चारों और ऑक्सीजन की कमी,
क्यों बेवजह खत्म हो रहा मानव का जीवन।।
क्यों वीरान सी लगती ये धरती,
क्यों वीरान से लगते ये वन।
शहर भी लगता सुनसान सा यहां,
क्यों चारों तरफ परेशान सा हर मन।।
आज देखो हर जन मानस का,
बिना हवा, प्यासा है तन मन।
कौन है जिम्मेदार इसका यहां,
दोषी है इसका यहां हर जन।।
पेड़ काटता निर्मम होकर मानव,
नहीं क्यों हूक उठती उसके मन।
पर्यावरण दिवस मनाने से क्या होगा,
जब कुल्हाड़ी से काटे हम पेड़ का तन।।
चलता रहा यही सिलसिला तो,
नहीं बचेगा पेड़ो का जीवन।
अरे शुद्ध हवा इनसे मिलती,
क्यों नहीं समझता है तू जन।।
बिना कार के तू कही जा नहीं सकता,
खराब करता रहता है पर्यावरण।
कपड़े के थैले से शर्म तुझको,
पलास्टिक क्यों उपयोग करे तू जन।।
धूम्रपान तो छोड़ नहीं सकता,
खोखला हो रहा तेरा तन मन।
धुंआ उड़ाता रहता हर वक्त,
दूषित करता रहता है पर्यावरण।।
सांसे है पर हवा नहीं,
क्यों नहीं डरता है तेरा मन।
आज जो हो रहा इस धरती पर,
दोषी नहीं तू है इसका कम।।
वक्त रहते संभल और पेड़ लगा,
तभी सुरक्षित है तेरा जीवन।
खुद समझ दूसरो को भी समझा,
नहीं बिना पेड़ो के है जीवन।।
तुमने तो कई बसंत देख लिए यहां,
तेरे बच्चों का शेष है जीवन।
बचाना चाहता गर तू उनको,
पेड़ लगाने का संकल्प ले अपने मन।।
कितने महान थे वो पुरानी पीढ़ी के लोग,
पेड़ो पर न्योछावर था उनका तन मन।
अरे गौरा देवी तो चिपक गई थी पेड़ो पर,
बचाना था उसको पेड़ो का जीवन।।
पढ़ी लिखी नही थी वो फिर भी,
जानती थी पेड़ो से ही मानव जीवन।
हम तो पढे लिखे समझते खुद को,
फिर भी काटते पेड़ो का तन मन।।
आओ आज कसम ये खाएं,
हर माह हम एक पेड़ लगाएं।
तभी तो सुरिक्षत रहेगा जीवन
होगा तभी यहां शुद्घ पर्यावरण।।
कसम ले उस माटी की आज,
जिससे मिलता तुझको अन्न।
बेवजह नहीं काटेगा पेड़ कभी,
संकल्प ले, ले तू अपने मन।।
अपने मन, अपने मन, अपने मन।।
कवि का परिचय
नाम- श्याम लाल भारती
राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसे लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
बहुत सुन्दर रचना