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November 10, 2025

कंफ्यूजन करें दूर, सात मार्च को जलाई जाएगी होली, आठ मार्च को खेला जाएगा रंग, जानिए मुहूर्त और कथाएं

रंगों का त्योहार यानि होली हिंदुओं के पुराने त्योहारों में से एक है। यह त्योहार सर्दी के खत्म होने के साथ व गर्मी की शुरुआत पर आता है। अक्सर लोग होली के दिन से गर्म कपड़े त्याग देते हैं और दीपावली से इसे पहनने की शुरुआत करते हैं। वहीं, यह त्योहार सिर्फ रंगों का त्योहार नहीं है, बल्कि आपसी प्रेम के प्रतीक इस त्योहार में लोग मौज मस्ती के साथ पुराने गिले-शिकवे भी माफ कर घुल-मिल जाते हैं। होली त्योहार लोगों को प्रेम से रहना सिखाता है। जाति, धर्म, रूप, रंग के भेद को दूर करने की प्रेरणा देता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

इस दिन मनाई जाएगी होली
हिंदू चंद्र-सौर कैलेंडर माह वसंत की शुरुआत का प्रतीक है। वहीं, यह वह समय होता है, जब होली मनाई जाती है, जबकि ग्रेगोरियन कैलेंडर होली के लिए मार्च की तारीख बताता है, हालांकि यह कई बार फरवरी के अंत में भी आ जाती है। इस बार वर्ष 2023 में होली का पर्व 8 मार्च (बुधवार) को मनाया जाएगा। इससे एक दिन पहले यानि सात मार्च को होलिका दहन होगा। द्रिक पंचांग के मुताबिक, पूर्णिमा तिथि 7 मार्च 2023 को शाम 4:17 बजे से शुरू होकर 8 मार्च 2023 को शाम 6:09 बजे समाप्त हो जाएगी। इस बीच होली का उत्सव रहेगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

ये है शुभ मुहूर्त
होली का त्योहार फाल्गुन पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। पंचांग के अनुसार फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि 6 मार्च 2023 को शाम 04.17 मिनट पर आरंभ होगी, अगले दिन 7 मार्च 2023 को शाम 06.09 मिनट तक रहेगी। इस हिसाब से होलिका दहन इस साल 7 मार्च 2023 को है। इसी दिन होलिका दहन के लिए शुभ समय शाम 6:31 बजे से रात 8:58 बजे तक रहेगा। होलिका दहन के दिन को छोटी होली भी कहा जाता है। इसी दिन पूर्णिमा का स्नान-दान, कुलदेवता का पूजन और सिंदूर अर्पण भी होगा। होलिका दहन के बाद रंगों की होली का उत्सव शुरू हो जाता है। 8 मार्च को रंगों की होली मनाई जाएगी। कहते हैं कि 7 मार्च की सूर्योदयकालीन पूर्णिमा के दिन सायंकाल प्रतिपदा में होलिका दहन करना चाहिए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

होलिका दहन पूजा विधि
शास्त्रों के अनुसार, होलिका दहन से पहले होलिका माई की पूजा विधिवत तरीके से करने का विधान है। होलिका दहन के दिन सूर्योदय के समय सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान कर लें। इसके बाद साफ सुथरे वस्त्र धारण कर लें।
अब होलिका दहन वाले स्थान पर जाएं। यहां पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएं। सबसे पहले गाय के गोबर से होलिका और प्रहलाद की प्रतिमाएं बनाएं।
अब हाथ धोकर पूजा प्रारंभ करें। सबसे पहले जल अर्पित करें।
अब रोली, अक्षत, फूल, माला, हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, रंग, सात प्रकार के अनाज, गेहूं की बालियां, गन्ना,चना आदि एक-एक करके अर्पित कर दें।
इसके साथ ही भगवान नरसिंह की पूजा भी कर लें।
होलिका पूजा के बाद कच्चा सूत से होलिका की 5 या 7 बार परिक्रमा करके बांध दें।
इसके साथ ही सुख-समृद्धि की कामना करें।
होलिका दहन के समय अग्नि में जौ या फिर चावल जरूर डालें। ऐसा करने से मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

होलिका दहन की पौराणिक कथा
पुराणों के अनुसार दानवराज हिरण्यकश्यप ने जब देखा कि उसका पुत्र प्रह्लाद सिवाय विष्णु भगवान के किसी अन्य को नहीं भजता। वह क्रुद्ध हो उठा और अंततः उसने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया की वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए। होलिका को वरदान प्राप्त था कि उसे अग्नि नुक़सान नहीं पहुंचा सकती। हुआ इसके ठीक विपरीत, होलिका जलकर भस्म हो गई और भक्त प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ। इसी घटना की याद में इस दिन होलिका दहन करने का विधान है। होली का पर्व संदेश देता है कि इसी प्रकार ईश्वर अपने अनन्य भक्तों की रक्षा के लिए सदा उपस्थित रहते हैं। होली की केवल यही नहीं बल्कि और भी कई कहानियां प्रचलित है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

कामदेव को किया था भस्म
होली की एक कहानी कामदेव की भी है। पार्वती शिव से विवाह करना चाहती थीं लेकिन तपस्या में लीन शिव का ध्यान उनकी तरफ गया ही नहीं। ऐसे में प्यार के देवता कामदेव आगे आए और उन्होंने शिव पर पुष्प बाण चला दिया। तपस्या भंग होने से शिव को इतना गुस्सा आया कि उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल दी और उनके क्रोध की अग्नि में कामदेव भस्म हो गए। कामदेव के भस्म हो जाने पर उनकी पत्नी रति रोने लगीं और शिव से कामदेव को जीवित करने की गुहार लगाई। अगले दिन तक शिव का क्रोध शांत हो चुका था, उन्होंने कामदेव को पुनर्जीवित किया। कामदेव के भस्म होने के दिन होलिका जलाई जाती है और उनके जीवित होने की खुशी में रंगों का त्योहार मनाया जाता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

महाभारत की कहानी
महाभारत की एक कहानी के मुताबिक युधिष्ठर को श्री कृष्ण ने बताया- एक बार श्री राम के एक पूर्वज रघु, के शासन मे एक असुर महिला थी। उसे कोई भी नहीं मार सकता था, क्योंकि वह एक वरदान द्वारा संरक्षित थी। उसे गली में खेल रहे बच्चों, के अलावा किसी से भी डर नहीं था। एक दिन, गुरु वशिष्ठ, ने बताया कि- उसे मारा जा सकता है, यदि बच्चे अपने हाथों में लकड़ी के छोटे टुकड़े लेकर, शहर के बाहरी इलाके के पास चले जाएं और सूखी घास के साथ-साथ उनका ढेर लगाकर जला दें। फिर उसके चारों ओर परिक्रमा दें, नृत्य करें, ताली बजाएं, गाना गाएं और नगाड़े बजाएं। फिर ऐसा ही किया गया। इस दिन को,एक उत्सव के रूप में मनाया गया, जो बुराई पर एक मासूम दिल की जीत का प्रतीक है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

श्रीकृष्ण और पूतना की कहानी
होली का श्रीकृष्ण से गहरा रिश्ता है। जहां इस त्योहार को राधा-कृष्ण के प्रेम के प्रतीक के तौर पर देखा जाता है। वहीं,पौराणिक कथा के अनुसार जब कंस को श्रीकृष्ण के गोकुल में होने का पता चला तो उसने पूतना नामक राक्षसी को गोकुल में जन्म लेने वाले हर बच्चे को मारने के लिए भेजा। पूतना स्तनपान के बहाने शिशुओं को विषपान कराना था। लेकिन कृष्ण उसकी सच्चाई को समझ गए। उन्होंने दुग्धपान करते समय ही पूतना का वध कर दिया। कहा जाता है कि तभी से होली पर्व मनाने की मान्यता शुरू हुई। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

होलिका दहन का इतिहास
विंध्य पर्वतों के निकट स्थित रामगढ़ में मिले एक ईसा से 300 वर्ष पुराने अभिलेख में भी इसका उल्लेख मिलता है। कुछ लोग मानते हैं कि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने पूतना नामक राक्षसी का वध किया था। इसी ख़ुशी में गोपियों ने उनके साथ होली खेली थी।
नोटः यहां दी गई जानकारी सामान्य धार्मिक मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। लोकसाक्ष्य इसकी पुष्टि नहीं करता है।

Bhanu Prakash

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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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