पढ़िए कवि ललित मोहन गहतोड़ी की कुमाऊंनी कविता-स्वानी स्वानी
स्वानी स्वानी…
स्वानी स्वानी मुखड़ि तेरी
स्वानी भलि झलकी छै…
म्येरा मन बसि मूरत जसि
उसि तेरी सूरत सुकली छै…
सीधी साधी भोली छै तू
ना तो उफली सुफली छै…
म्येरा मन बसि मूरत जसि
उसि तेरी सूरत सुकली छै…
मेरि ईजु की पसंद छै तू
बौज्यू कि तू भुलि छै…
म्येरा मन बसि मूरत जसि
उसि तेरी सूरत सुकली छै…
नाम कि छै बलि तेरो
खिमलि छै कि हिमली छै…
म्येरा मन बसि मूरत जसि
उसि तेरी सूरत सुकली छै…
कवि का परिचय
नाम-ललित मोहन गहतोड़ी
शिक्षा :
हाईस्कूल, 1993
इंटरमीडिएट, 1996
स्नातक, 1999
डिप्लोमा इन स्टेनोग्राफी, 2000
निवासी-जगदंबा कालोनी, चांदमारी लोहाघाट
जिला चंपावत, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।