पढ़िए दीनदयाल बन्दूणी की गढ़वाली रचना- एक दिल हूंद
” एक दिल हूंद “
दिल सब्यूं , भितर हूंद.
दिली त हूंद , जो रूंद.
दिल जड़द- पच्छ्यड़द-
भितनैं रूंद , भैनैं धूंद..
दिल , कन क्य चांद.
दिल क्य पांद – हत्यांद.
सब रैंद , येका भितर-
येम सौ-समोदर समांद..
दिल , खुट-खुट धड़कद.
दिल , क्वी बात पकड़द.
छोड़ि नि पांदु , वीं बात-
जीति जिंदगी , तड़फद..
दिल , कैकु न दुखावा.
दिल , समझी मिलावा.
मिलावा , त – न त्वाड़ा –
यांकु , ताउम्र रै पछतावा..
दिल , आत्मा पच्छ्यांण च.
दिल कि , कुंगऴि बांण च.
भुल़ण फरि , ह्वे बेचैन –
मिल़ण फरि , बुत्थ्याण च..
‘दीन’ दिला बात , जांणा.
दिल कु बोल्यूं , मांणा.
दिलम बसीं रैंद , आत्मा –
दुयूं , जांणा – पच्छ्याणा..
कवि का परिचय
नाम .. दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन
गाँव.. माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य
सन् 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।