युवा कवयित्री किरन पुरोहित की कविता में पढ़िए, सुप्रभात का नजारा
“ब्रह्म मुहूर्त का समय” अर्थात वह समय जिस समय अंधेरे पर उजाले की जीत होती है और सारी सृष्टि में एक जागृति आ जाती है। पंछी स्वत: ही अपनी निद्रा का त्याग कर देते हैं और चारों ओर सुप्रभात का संदेश देते हैं। इस सुप्रभात को जब मैंने चारों ओर देखा तो यह पाया-
मैं देख रही हूं …..
मैं देख रही हूं ,
शांत नील अंबर को ।
कितना कुछ कहता हुआ ,
ये कितना चुप ।।
कैलाश क्षेत्र में ,
बालसूर्य खिल रहा ।
अलकनंदा घाटी में ,
कोलाहल हो रहा ।।
रात का नशा छूटता है ,
देवत्व जागता मंद – मंद।
बहती अलकनंदा लाई निज संग ,
बद्रीवनों से तुलसी की सुगंध ।।
उड़ती नभ छूती चिड़िया हैं ,
चहकती स्वरों के सप्त रागों में ।
फूल हंसे खिलने से लगे ,
भ्रमर गूंजते बागों में ।।
आज ब्रह्ममुहूर्त का पावन नजारा ,
एकांत साधना करते पर्वत करें बात ।
नैन मूंदे तब यहां पर रात थी ,
मैं देख रही हूँ होती प्यारी सुप्रभात ।।
…….किरन पुरोहित हिमपुत्री
लेखिका का परिचय —
नाम – किरन पुरोहित “हिमपुत्री”
पिता – श्री दीपेंद्र पुरोहित
माता – श्रीमती दीपा पुरोहित
जन्म – 21 अप्रैल 2003
आयु – 17 वर्ष
अध्ययनरत – कक्षा 12वीं उत्तीर्ण
निवास, कर्णप्रयाग चमोली उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।