गुरु गोविंद ने दशम ग्रंथ में दिया हेमकुंड साहिब का विवरण, फिर हुई इस पवित्र स्थल की खोज, जानिए रोचक तथ्य
सिखों के पवित्र तीर्थस्थल हेमकुंड साहिब के बारे में भी रोचक तथ्य है। इस स्थान की खोज के लिए गुरु गोविंद जी के दशम ग्रंथ में लिखे गए आधार पर की गई। उन्होंने इस स्थान का जिक्र किया था, पर कोई वहां तक नहीं पहुंचा था। यह स्थान लोगों की नजर से ओझल था। तब 1926 के दौरान इस स्थान की खोज की गई। यह पवित्र स्थल उत्तराखंड के चमोली जिले में है। यहां इतिहासकार बता रहे हैं हेमकुंड साहिब की यात्रा के बारे में।
गोविंदघाट गुरुद्वारा
हरिद्वार से गोविन्दघाट की दूरी 302 किलोमीटर है। अलकनन्दा और भ्यूंडार नदी के संगम पर जोशीमठ से 20 किलोमीटर की दूरी पर गोविन्दघाट स्थित हैं। यहाँ पर सिखों का गुरुद्वारा है। यहीं से हेमकुण्ड, लोकपाल एवं फूलों की घाटी हेतु पैदल मार्ग प्रारम्भ होता है। गुरूद्वारे के समीप ही अलकनन्दा पर झूला पुल है। पुल पार करते ही अनवरत चढ़ाई प्रारम्भ हो जाती है। भ्यूंडार से पहले पुलना गाँव पड़ता है। यहाँ भ्यूंडार निवासी शीतकाल में आ जाते हैं। लगभग चार किलोमीटर चलने के पश्चात् भ्यूंडार गाँव आता है। भ्यूंडार के पश्चात् सघन वन आरम्भ होता है।
दुर्गम चढ़ाई के साथ शुरू होती है यात्रा
भ्यूंडार से एक सीधा मार्ग घांघरिया के लिए तथा दूसरा काकभूसुण्डी ताल के लिए है। यह ताल कठिन चढ़ाई व लगातार पैदल यात्रा के उपरान्त 17000 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। इसका सुन्दर वर्णन तुलसीदास ने उत्तरकाण्ड में काक-गरूड़ संवाद के माध्यम से किया है। काकभुसुण्डी के दर्शनोपरान्त वापिस घांघरिया की दिशा में 14 किलोमीटर चलने पर घांघरिया पहुँचा जाता है। घांघरिया में गढ़वाल मंडल विकास निगम का विश्रामगृह व सिखों का गुरुद्वारा गोविन्दधाम हैं, जहाँ रात्रि विश्राम की पूर्ण व्यवस्था है।
हेमकुंड साहिब-लोकपाल
गोविन्दधाम से पंगडंडीनुमा मार्ग हेमकुंड साहिब व लोकपाल को जाता है। हेमकुंड साहिब के विषय में गुरु गोविन्द सिंह ने दशम ग्रन्थ के विचित्र नाटक वाले छठे अध्याय में विवरण दिया है-
अब मैं अपनी कथा बखानू, तप साधन जे विधि मोहि आनू ।
हेमकुंड पर्वत है जहाँ, सप्त श्रृंग शोभत है वहाँ ।
ते हम अधिक तपस्या साधी, मुहाकाल काल का आराधी।
ये विधि करत तपस्या भयो, द्वे रुप से एक रुप है गयो।
इस तरह से की गई हेमकुंड साहिब की खोज
इस विवरण के आधार पर ही हेमकुंड साहिब की खोज की गयी। इस खोज का काम दो फौजी सिख जवान को सौंपा गया। कई दिनों की खोज के उपरान्त जब निराशा ने उन्हें घेर लिया, तब उन्होंने गोविन्दघाट के समीप पुलन और भ्यूंडार में जाकर शरण ली। यह दोनों गाँव पृथ्वीराज चौहान के वंशज राजपूतों के हैं। इन दोनों सिख जवानों को भेंट एक पथ प्रदर्शक परिवार से हो गयी। उस परिवार के नंदा सिंह और उसके पिता इन सिख जवानों के साथ हो लिये। इस परिवार ने ही हेमकुंड साहिब के वास्वविक स्थान को ढूंढ निकाला। यही नंदासिंह और उसके परिवारजन आज भी राजपूत गढ़वाली होने के बाद भी गुरु गोविन्द सिंह और उनके दशम ग्रन्थ का पाठ श्रद्धाभाव से करते हैं। का घटना सन् 1926 की है।
सुंदर दृश्य भुला देते हैं थकान
घांघारिया व गोविन्दधाम से लगभग एक किलोमीटर की चढ़ाई पार करने के उपरान्त मुख्य मार्ग दो भागों में विभाजित होता है। एक मार्ग फूलों की घाटी व दूसरा लोकपाल व हेमकुण्ड साहिब के लिए जाता है। मार्ग अत्यंत दुरूह व थकाने वाला है परन्तु इस मार्ग पर अग्रसर होते हुए जो नयनाभिराम दृश्य एवं सुन्दर पुष्पमंडित शिलाओं की अलौकिक आभा यात्रियों को दृष्टिगोचर होती है। वह मार्ग की थकान को भुला देती है। हेमकुंड पहुंचने के लिए बर्फ के ग्लेशियर को काटकर रास्ता बनाया जाता है।
यहां लक्ष्मण ने किया था ब्रह्महत्या निवारण के लिए तप
दुर्गम चढ़ाई पार करते ही 15210 फीट की ऊँचाई पर हेमकुण्ड गुरुद्वारा व लोकपाल अर्थात् लक्ष्मण मन्दिर के दर्शन होते हैं। पुराणों के अनुसार यहाँ लक्ष्मण ने रावण वध के उपरान्त ब्रह्महत्या निवारणार्थ तप किया था। हेमकुण्ड, लोकपाल से नीचे उतरकर लक्ष्मणगंगा के किनारे-किनारे पतली पगडंडी को पार करते हुए पुष्पावती नदी के समीप रास्ता पहुँचता है।
बस यहीं से आरम्भ होती है फूलों की घाटी की सुरम्य यात्रा। पुष्पावती नदी ग्लेशियर के अन्दर गुफा बनाती एक ओर से विलीन होकर दूसरी ओर आवाज करती हुई प्रकट होती हैं। दूर-दूर तक फूलों का संसार, दूर उत्तरी दिशा में कामेत, रक्तवर्ण, नीलगिरी एवं गन्धमादन श्रृंखला के हिमशिखर दृष्टिगोचर होते हैं। जून की प्रथम वर्षा फुहार के साथ ही 12000 फीट की ऊँचाई वाली यह घाटी, बर्फ पिघलते ही रंगों से सरोबार हो जाती है। पुराणों में इस घाटी को नन्दन-कानन कहा गया है।
लेखक का परिचय
लेखक देवकी नंदन पांडे जाने माने इतिहासकार हैं। वह देहरादून में टैगोर कालोनी में रहते हैं। उनकी इतिहास से संबंधित जानकारी की करीब 17 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। मूल रूप से कुमाऊं के निवासी पांडे लंबे समय से देहरादून में रह रहे हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
ज्ञानवर्धक और रोचक जानकारी ।।
श्री हेमकुंड साहिब की जय हो ।।?