पढ़िए दीनदयाल बन्दूणी की गढ़वाली कविता-अधूरु जीवन
” अधूरु जीवन “
जीवन म सबि धांणी- गांणी , कब ह्वीं पूरी.
सच बोन ज्यूकि सोचीं बात, रै जांद अधूरी..
छोटौं से लेकी , बड़ा-बड़ौं तलक,
सब्यूंकि रैंद , कुछ – कुछ गांणि.
यूं तैं छट्यांण , पुर्याणा जुगत म –
जलम-भर कि रै , खैंचा – तॉड़ीं..
एक सोचि , तबरि हैंकी ऐ जांद,
क्वी बि बात , क्वी पुरे नि पांद.
जरा यख उधड़ी, जरा वख उधड़ी-
सरि उमर उधड़्यां , थेगऴे पांद..
जीवन बिति जांद , तनी – मनि झुरि- झूरी.
जीवन म सबि धांणी- गांणी , कब ह्वीं पूरी.
सच बोन ज्यूकि सोचीं बात , रै जांद अधूरी..
साधन-सम्पन्न , कनिबि हो क्वी,
ज्यूकी पूरि , कैन कब पुरे पायि.
एक अनार , बल सौ छन बिमार-
तबरि त हौरि- कुछ , हुर्रे ग्यायि..
जीवन , अफ से अफ तक नींच,
अपड़ौंम बटि , कै- ऐ जंदीं बीच.
बीच – बचौं का , घपरचाळ म –
ह्वे बिगर बाता , खींच -म- खीच..
तूड़ा- बूड़ी ह्वे , ह्वे बिगर बात की घूरा- धूरी.
जीवन म सबि धांणी-गांणी , कब ह्वीं पूरी.
सच बोन ज्यूकि सोचीं बात , रै जांद अधूरी..
कुछ अपड़ी , कुछ हौर्यूं माना,
जीवन का ये , सार पच्छ्यांणा.
खाली हाथ हि , आयी मनखी-
खाली हाथ हि, यख बटि जांणा..
इच्छा कारा , मन से पूरू कारा,
अगनै – पिछनै , चौछोड़ि ह्यारा.
कै नि सताॅणूं , कै नि दुखाॅणूं-
सब छन अपड़ा, सब छन प्यारा..
‘दीन’ इनम हि रै जंदीं , ज्यूकि स्वचीं अधूरी.
जीवन म सबि धांणी-गांणी , कब ह्वीं पूरी.
सच बोन ज्यूकि सोचीं बात , रै जांद अधूरी..
कवि का परिचय
नाम .. दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’
गाँव.. माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य
सन् 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।