एक थी रीता एक है रीता: समाज सेविका एवं कवयित्री रीता शर्मा के जन्मदिवस पर स्मृति शेष
“तुम फिकर मत करना तुम्हारी साल भर की फीस मैं दूंगी। और ड्रैस भी। किताबे और भी जरुरतों के सभी सामान …। “जब एक दिन रीता ने स्कूल की एक बच्ची को ऐसा कहा तो वह अपने मां पिता को ले आई। उन्होने हाथ जोड़ कर धन्यवाद दिया। पिता बीमार थे। उनकी आंखों मे आंसू थे ।
वैसे यह एक बच्ची नही थी, जिसकी जिम्मेदारी रीता ने ली थी। पांच साल से वह पचासों बच्चो का खर्च उठाती रही। अपनी सीमित तन्ख्वा से। यह उसने कभी किसी को बताया भी नही। घर मे भी नहीं। वह एमकेपी इन्टर कॉलेज देहरादून मे पढाती थीं। मेरी बड़ी बहन। हम रेखा दी, रंजना दी, और अम्मा जी एक साथ किराये के मकान मे रहते थे। वह बहुत अच्छी कविताएं लिखती। तीखे व्यंग। वे लोकप्रिय थी ।
एक सुबह सूरज तो निकला पर वह काला था। सुबह तो हुई पर वह बीमार थी। सूचना मिली कि रीता बीमार है। टैस्ट हुए तो पता चला कि उनको लिवर कैंसर है। आगे जीवन की कोई सम्भावना नही । हमारे लिए यह एक ऐसा समाचार रहा कि हमारे चारों ओर अंधकार छा गया। हम फिर भी शहर शहर अस्पतालों मे जा कर कोशिश करते रहे, लेकिन सब बेकार। वह घर लाई गई। उसके चेहरे पर ऐसा एहसास था कि कोई भी सब हंसते रहें ।
उन्होने उस अवस्था मे कविताएं लिखीं। “संघर्ष मे सत्य “। इतनी सकारात्मक कविताएं कि उसको पढकर उनकी जिजीविषा का भान होता था। कविताएं परिवार के लिए छात्राओं के लिए और देश दुनियां के लिए। अद्भुत कविताएं। हर पल को जीने के लिए प्रेरित कर देने वाले विचार। कोई निराशा नहीं। जीवन से लबरेज़। यही जीवन था रीता का। हां । कुमारी रीता शर्मा का ।
एक दुर्भाग्यपूर्ण दिन आया जब वे हमे छोड़ कर चली गईं। आंसुओं मे डूबी आंखो से। उसकी छात्राओं और उनके अभिभावको ने आकर बताया कि रीता मैडम की वजह से हमारी मदद होती रही वर्षो से। यह बात तब पता चली। वह चुपचाप सद्कर्मों मे लगी रही। कूड़ा बीनने वाले बच्चों के साथ काफी कार्य किया था ।
उनके निधन के बाद रेखा दी ने उनके आंतिम दिनो के संस्मरण लिखे । पुस्तक “गुनगनाया देवदार ” यह रीता का लिखा गीत भी है। उसके विमोचन मे जमनालाल बजाज पुरुस्कार विजेता राधा भट्ट और बहुत से आत्यीय लोगो ने उन्हे याद किया। उस समय मुख्य मंत्री नित्यानंद स्वामी जी ने एक जगह रीता के विषय मे कहा था कि वे सरल पर निर्भीक वक्ता थी। उन्होंने उत्तराखंड आन्दोलन में भी भाग लिया था। बहुत छोटी उम्र मे वह चली गईं ।
डॉ .सुरेंद्र कौशिक, डॉ. नितिन बंसल. डॉ. अनिल शर्मा. डॉ. पीके नेगी ने उस समय पूरा साथ दिया। बाकी सबका उल्लेख पुस्तक मे है। उनकी एक एक बात हमेशा प्रेरणा देती हैं । पुस्तक की समीक्षा मे पत्रकार जेन टोडरिया (स्मृति शेष) ने उन्हे कैंसर विजेता बताया और कई समाचार पत्रो ने विशेषान्क भी निकाले ।
उनकी कविता बच्चे गाते हैं _
अतिथि के स्वागत मे
एक पैर खड़ा रहा देवदार “?
उनकी एक और कविता है जो रंजना दी ने सहेजी है_
बच्चे ऐसे ही जाते रहें स्कूल
मै रहूं न रहूं
शामिल रहूं उनके साथ.. ।
आज रीता शर्मा की जन्म तिथि है। उनका जन्म 7 नवम्बर है और उनका निधन 26 अप्रैल 2006 को हुआ। उनके निधन के बाद एक वर्ष तक हर महीने साहित्य गतिविधियां हुई। तीन कहानियों का मंचन हुआ। प्रेमचन्द की कहानी बड़े भाई साहब को विजय आर्य और पृसवीण ने मंचन किया किया। रेखा शर्मा की कहानी को सौम्या ने मंचित किया। इसी के साथ युगांतर, इप्टा ने भी मंचन किये और भी बहुत गतिव हुई ।
याद में सम्मान समारोह
परिवार ने उनकी स्मृति मे हर वर्ष विभिन्न प्रतिभाओ को सम्मानित करने का सिलसिला जारी रखा है। रीता शर्मा स्मृति सम्मान अब तक जिन्हे दिया गया उनमे-लोक गायिका संगीता ढौढियाल, प्रकाशिका रानू बिष्ट, कवि चित्रकार जय कृष्ण पैन्यूली (कीर्ति नगर ), पत्रकार कवि अध्यापक प्रबोध, शूटर दिलराज कौर, डौली डबराल, विरेन डंगवाल (कवि), पत्रकार दुर्गा नौटियाल ऋषिकेश, चेयर मैन आईटीएम निशांत थपलियाल, रंगकर्मी पूनम उनियाल शामिल है। इस वर्ष यह सम्मान प्रसिद्ध रंगकर्मी जहूर आलम को प्रदान किया गया है। कवयित्री और समाजसेवी व अध्यापिका रीता शर्मा आज भी हमारे साथ है। पूरी सार्थकता के साथ । पर सच यह भी है कि हमारी यह रिक्तता कभी भरेगी नही । आज उनकी जन्मतिथी पर सादर नमन ।
कु रीता शर्मा का परिचय
स्वतंत्रता सेनानी कवि श्री राम शर्मा प्रेम की पुत्री रीता शर्मा ने बाल नुक्कड़ नाटकों मे संगठन का अभूतपूर्व कार्य किया था। वह शुरू से एमकेपी कॉलेज मे पढ़ीं । उन्होने एमए हिन्दी विषय से उत्तीर्ण किया था। साथ ही बीटीसी करके एमकेपी इन्टर कॉलेज देहरादून मे अध्यापन आरम्भ किया । बहुत छोटी उम्र मे उन्होने कार्य शुरु कर दिया था। 1976के आसपास। सांस्कृतिक गतिविधियों मे उनकी बहुत रुचि रही। साथ ही छात्राओं को भी वे प्रेरित करती थीं। साहित्य और रंगमंच तो उनके प्रिय विषय रहे। उनकी सहपाठी सिने अभिनेत्री अमरदीप चड्ढा जो “थ्री इडियेट ” मे और धारावाहिक “ये रिश्ता क्या कहलाता है ” मे शंकरी ताई की भूमिका मे पहचान बना चुकी है। उनके साथ निरन्तर संपर्क मे रही थीं।
लेखक का परिचय
डॉ. अतुल शर्मा (जनकवि)
बंजारावाला देहरादून, उत्तराखंड
डॉ. अतुल शर्मा उत्तराखंड के जाने माने जनकवि एवं लेखक हैं। उनकी कई कविता संग्रह, उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। उनके जनगीत उत्तराखंड आंदोलन के दौरान आंदोलनकारियों की जुबां पर रहते थे।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।