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September 14, 2024

यूपी में रामराज, पुजारी से मांग लिया भगवान राम का आधार कार्ड, नहीं बेच पा रहा है मंडी में अनाज

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उत्तर प्रदेश में वाकई रामराज चल रहा है। तभी तो मंदिर परिसर की जमीन पर उगाई गई गेहूं की फसल बेचने पर उसे भगवान राम के आधार कार्ड की जरूरत पड़ गई।

उत्तर प्रदेश में वाकई रामराज चल रहा है। तभी तो मंदिर परिसर की जमीन पर उगाई गई गेहूं की फसल बेचने पर उसे भगवान राम के आधार कार्ड की जरूरत पड़ गई। उसने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि उसे मंडी में फसल के साथ भगवान राम का आधार कार्ड लेकर भी जाना था। ये भी नियमों का एक सच है। जिसके चलते भगवान राम के नाम पर पंजीकृत मंदिर की जमीन पर उगाए गए अन्न को पुजारी सरकारी मंडी में इसलिए नहीं बेच पा रहे, क्योंकि उनके पास भगवान के नाम का आधार कार्ड नही हैं।
दरअसल नियम है कि सरकारी मंडी में अन्न बिकने के लिए उक्त जमीन का पंजीकरण जरूरी है। अब पंजीकरण तभी होगा जब जमीन के मालिक के पास आधार कार्ड होगा। अब मंदिर की जमीन तो भगवान के नाम पर है। ऐसे में भगवान का आधार कार्ड कैसे बनेगा, ये देखने वाली बात है।
उत्तर प्रदेश के बांदा के  कुरहरा गांव में जब यह वाकया चर्चा मे आया तो वहां के एसडीएम ने कहा कि पुजारी से आधार कार्ड दिखाने की मांग नहीं की गई, लेकिन फिर भी उन्हें पूरी प्रक्रिया समझाई गई है। कुरहरा गांव में एक राम जानकी मंदिर है। सात हेक्टेयर जमीन पर बने इस छोटे से मंदिर के महंत रामकुमार दास पुजारी हैं। वे इस सात हेक्टेयर भूमि पर खेती करते हैं। इससे मंदिर के पुजारियों का पेट भरता है।
मंदिर की ये सात हेक्टेयर जमीन भगवान राम और माता जानकी के नाम पर है। ऐसे में पंजीकरण के लिए उनका आधार कार्ड जरूरी है। अब पेंच ये आ रहा है कि भगवान का आधार कार्ड कैसे बनेगा। मंदिर के पुजारी ने कहा कि पिछले साल भी उन्होंने मंदिर की जमीन पर उपजाए अन्न को सरकारी मंडी में बेचा था, लेकिन ऐसा कोई नियम नहीं आड़े आया था। इस बार वो आधार कार्ड कहां से लाएं, ताकि जमीन का पंजीकरण हो सके।
पंडितों ने मिलकर इस जमीन पर इस बार सौ क्विंटल अन्न उपजाया था, लेकिन वो इसलिए इस अन्न को बेच नहीं पा रहे हैं क्योंकि जमीन का पंजीकरण नहीं है और पंजीकरण तब होगा जब जमीन के मालिक का आधार कार्ड  दिखाया जाएगा। अब भगवान राम का आधार कार्ड कहां से बनवाया जाए, पंडितों को ये चिंता खाए जा रही है।
उधर बांदा जिला आपूर्ति अधिकारी, गोविंद उपाध्याय ने भी इस अनोखे मामले पर बयान दिया है। उनका कहना है कि ये सरकार का नियम है कि  मठों और मंदिर से उपज यानी अन्न नहीं खरीदा जा सकता। पिछले साल तक सारा अन्न जमीन की खतौनी या खसरा (भूमि का सरकारी रिकॉर्ड) दिखाकर अन्न बेचा जाता था, लेकिन इस बार जमीन का पंजीकरण का नियम जरूरी हो गया है। इसलिए ये बात उठी है।
इस संबंध में प्रदेश के कृषि राज्यमंत्री एवं जनपद प्रभारी लाखन सिंह राजपूत ने कहा कि मंदिर और धर्मस्थलों से संबंद्ध खेती की भूमि में होने वाली उपज की सरकारी खरीद केंद्रों में अब भगवान के आधार का अड़ंगा नहीं लगेगा। सबंधित ट्रस्टी के ही आधार/अभिलेख से फसल बेची जा सकेगी।
कई हैं ऐसे मंदिर
क्षेत्र के तमाम मंदिरों में लगी हुई भूमि की फसल (गेहूं) सरकारी खरीद केंद्रों में यह कहकर नहीं खरीदी जा रही है कि संबंधित मंदिर के देवता या भगवान के नाम का आधार कार्ड लगाकर रजिस्ट्रेशन कराएं। बताया जा रहा है कि इस तरह वहां करीब 34 मंदिर हैं, जहां खेती की जा रही है।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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