लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी की बड़े खेल की तैयारी, उत्तराखंड में तैयार हो रही है भूमिका
वर्ष 2024 में लोकसभा चुनाव की नैया को पार करना इस बार बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती माना जा रहा है। क्योंकि बीजेपी ने जिन मुद्दों पर पिछले चुनाव लड़े थे, उनमें से कई पूरे हो चुके हैं। वहीं, विपक्ष गरीबी, बेरोजगारी, बढ़ती महंगाई और नफरत के मुद्दे को लेकर लगातार संघर्ष कर रहा है। वर्ष 2019 में भी एक बार लगा था कि बीजेपी को विपक्ष की ओर से चुनौती मिलेगी, लेकिन पुलवामा हमले को देशभक्ति और सेना के नाम पर बीजेपी ने वोटों में तब्दील कर दिया था। ऐसे में इस तरह से लोगों की भावनाओं पर बार बार खेलना संभव नहीं है। अब माना जा रहा है कि बीजेपी के पास चुनाव की नैया पार लगाने के लिए एक बड़ा अस्त्र है। इसकी भूमिका उत्तराखंड में तैयार हो रही है। ये अस्त्र है समान नागरिक सहिंता। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
रिपोर्ट का है इंतजार
अब माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव 2024 से पहले केंद्र की भारतीय जनता पार्टी सरकार समान नागरिक सहिंता को लेकर कोई बड़ा फैसला ले सकती है। केंद्र सरकार ने समान नागरिक संहिता की भूमिका तैयार करने के लिए उत्तराखंड को ही चुना। यहीं से ये मामला उठाया गया। अब इस संबंध में उत्तराखंड में बनाई गई समिति की रिपोर्ट का इंतजार है। माना जा रहा है कि अगले दो से तीन महीनों में उत्तराखंड की कमेटी की रिपोर्ट आने की संभावना है। उत्तराखंड में समिति की रिपोर्ट के आधार पर मॉडल कानून तैयार किया जाएगा। उसी मॉडल कानून को अन्य बीजेपी शासित राज्यों और बाद में पूरे देश में लागू किया जा सकता है। इस मामले को विधि आयोग भी देख रहा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
समिति में शामिल हैं ये लोग
उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता को लेकर ड्राफ्ट तैयार करने के लिए बनाई गई समिति में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज रंजना देसाई अध्यक्ष हैं। समिति में रिटार्यड जज प्रमोद कोहली, पूर्व मुख्य सचिव उत्तराखंड शत्रुघ्न सिंह, दून यूनिवर्सिटी की वाइस चांसलर सुरेखा डंगवाल और सामाजिक कार्यकर्ता मनु गौर शामिल हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
समाज के विभिन्न वर्गों से समिति ले रही है सुझाव
इस कमेटी ने राज्य में समाज के विभिन्न वर्गों से व्यापक विचार विमर्श किया है। गांव गांव और शहरों में लोगों के साथ बैठकें की हैं। कमेटी को अभी तक उत्तराखंड में दो लाख चालीस हजार सुझाव मिले थे। सूत्रों के अनुसार बहु विवाह को छोड़ कर कोई भी प्रावधान धार्मिक आधार पर नहीं है। यह महिलाओं के समान अधिकार इत्यादि पर बात कर सकता है। साथ ही, समलैंगिता, लिव इन रिलेशनशिप जैसे मुद्दों पर भी एक समान कानून की वकालत कर सकता है। इसके दूरगामी परिणाम इसीलिए व्यापक विचार विमर्श किया जा रहा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
गुजरात सरकार भी कर रही है विचार
उत्तराखंड की तर्ज पर गुजरात में भी बीजेपी सरकार ने समान नागरिक संहिता के लिए कमेटी बनाने की बात कही है। वहां कैबिनेट ने मंजूरी दी है, लेकिन अभी तक कमेटी का गठन नहीं हुआ है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि राज्य में समान नागरिक संहिता लागू की जाएगी। उत्तराखंड की कमेटी की ड्राफ्ट रिपोर्ट आने के बाद अन्य राज्यों में भी उसी के आधार पर कानून बनाने में मदद मिलेगी। इसी तरह अगर बाद में केंद्र चाहे तो उस ड्राफ्ट रिपोर्ट के आधार पर पूरे देश के लिए समान नागरिक संहिता लाने पर विचार कर सकती है। ऐसे में उत्तराखंड से ही समान नागरिक संहिता की शुरुआत होने जा रही है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
दो मुद्दे हो चुके हैं पूरे, तीसरे से चुनाव की नैया पार करने की तैयारी
समान नागरिक संहिता बीजेपी की मूल विचारधारा से जुड़े तीन प्रमुख मुद्दों में से एक है। अन्य दो मुद्दे अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण चल रहा है, जो कि अगले साल ही अप्रैल तक पूरा होने की संभावना है। वहीं, दूसरा मुद्दा जम्मू कश्मीर से धारा 370 समाप्त करना था, जो की पहले ही पूरा कर लिया गया है। अब माना जा रहा है कि अगले लोक सभा चुनाव से पहले समान नागरिक संहिता पर भी केंद्र सरकार आगे बढ़ेगी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
अपील को सुप्रीम कोर्ट ने किया था खारिज
केंद्र सरकार ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि वह समान नागरिक संहिता के पक्ष में है और यह काम संसद का है, सुप्रीम कोर्ट का नहीं है। उत्तराखंड की कमेटी के गठन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया था। समान नागरिक संहिता का मतलब है विवाह, तलाक, गोद लेने और उत्तराधिकार जैसे व्यक्तिगत मामलों में एक जैसे कानून लागू होना। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
भारतीय संविधान में समान नागरिक संहिता
संविधान के अनुच्छेद 44 में वर्णित नीति निर्देशक सिद्धांतों में समान नागरिक संहिता की वकालत की गई है। आजादी के बाद से ही विभिन्न सरकारों ने अलग-अलग धर्मों के आधारित नागरिक संहिता की अनुमति दी है। हालांकि 21 वें विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि समान नागरिक संहिता न तो आवश्यक है और न ही वांछित है। कानून मंत्री किरेन रिजुजु संसद में पहले ही बोल चुके हैं कि 22वां विधि आयोग समान नागरिक संहिता के बारे में विचार करेगा। पिछले साल नवंबर में इसकी स्थापना की गई थी। 21 वें विधि आयोग का विचार विमर्श का दायरा सीमित था. उसे देश भर से 78 हजार सुझाव ही आए थे, जबकि उत्तराखंड की समिति को छोटा राज्य होने का बावजूद दो लाख चालीस हजार सुझाव मिले हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पिछले साल राज्यसभा में पेश किया था प्रस्ताव
पिछले साल भाजपा के राज्यसभा सांसद किरोड़ी लाल मीणा ने राज्यसभा में यूनिफॉर्म सिविल कोड (समान नागरिक संहिता) का प्रस्ताव पेश किया था। हालांकि, राज्यसभा में यह विधेयक सरकार द्वारा पेश नहीं किया गया, बल्कि सांसद द्वारा इस प्रस्ताव को पेश किया गया। राज्यसभा में एक निजी सदस्य विधेयक के रूप में यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) विधेयक पेश किए जाने के बाद भाजपा के रुख ने संकेत दिया था कि किरोड़ी लाल मीणा को पार्टी का मौन समर्थन है। तब विपक्ष के विरोध के बीच समान नागरिक संहिता विधेयक को लेकर 63 सदस्यों ने विधेयक के पक्ष में मतदान किया था, जबकि 23 मत इसके विरोध में पड़े। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल और द्रमुक ने विरोध प्रदर्शन किया, जबकि बीजू जनता दल ने सदन से वॉक आउट कर दिया। सूत्रों ने कहा कि कुछ सदस्यों को छोड़कर कांग्रेस स्पष्ट रूप से अनुपस्थित थी और संकेत दिया कि कांग्रेस बिल का विरोध नहीं करना चाहती हो।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।