कोरोना पीड़ित होने के बावजूद सकारात्मक सोच, होम आइसोलेशन में भी कविता गढ़ रहे ये शिक्षक, पढ़िए नई कविता
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बांध दिए क्यों प्राण प्राणों से!
याद दिलाती ये पंक्तियां मुझे।
अब यह मर्म कथा,बढ़ती विरह व्यथा,
पन्त जी की भीनी भीनी यादों से।।
जन्मे 20 मई 1900 अल्मोड़ा कौसानी,
गंगा दत्त के लाडले प्राणों से!।
नाम था गुसाईं दत्त जिनका,
नहीं भाया यह नाम प्राणों से!।।
खुद नाम दे डाला सुमित्रा नंदन पन्त,
प्रकृति का सुकुमार कवि,प्राणों से!।
हिमालय के सुरम्य कुर्मांचल में जन्मे,
आज भी लाडले हैं प्राणों से!।।
झम झम बादल बरसते,
लगते जैसे सावन से!
छम छम गिरती बूंदे वर्षा की,
कितनी प्रिय लगती सब प्राणों से!।
याद में नाच रहे पुष्प,डाली डाली,
हर श्रृंगार करते बेला बढ़ती जाएं।
जन्म दिन जो आज है उनका,
आगमन के लिए खड़े वे प्राणों से!।
लिख डाले मन के शब्द,
चिदंबरम बीणा,पल्लव गुंजन प्राणों से!।
ग्राम्या युगांत युगवाणी लोकायन लिखा,
बूढ़ा चांद से मिला अकादमी पुरस्कार प्राणों से!।।
कई साहित्य सृजन कर डाले,
साहित्य के लिए न्योछावर प्राणों से!।
जन मानस की सेवा के लिए,
मिला पद्मविभूषण प्राणों से!।।
कभी कभी पैदा होते येसे मानस,
प्रकृति के सुकुमार कवि प्राणों से!।
पर युगों युगों तक कौन जीता यहां,
1977 दिसंबर में सो गए प्राणों से!।
प्रकृति प्रेम अथाह था मन में,
प्रकृति पर रचना करे प्राणों से!।
याद रहेंगे सदा इस धरा में,
आज भी प्रिय लगते सबको प्राणों से!।।
लिखना तो बहुत चाहता में मन से,
पर याद में विचलित हूं प्राणों से!।
चलो कुछ तो लिख सका मैं,
यादों में खो गया उनकी प्राणों से!।
कवि का परिचय
नाम- श्याम लाल भारती
राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसी लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं। इन दिनों वे कोरोना से पीड़ित हैं और होम आइसोलेशन में हैं। फिर भी वे कविता लिख रहे हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।