युवा कवि विनय अन्थवाल की कविता-महाभारत
महाभारत
महाभारत फिर सज रहा है
महायुद्ध भी ठन रहा है।
मानव- दानव बन रहा है
भावी युद्ध को सजा रहा है।
ज्ञानी ज्ञान अमृत पिए हैं
पापी पाप में लिप्त हुए हैं।
धरती माँ संतप्त हुई है
मानवता से त्रस्त हुई है।
महाकाल सब देख रहा है
मानव मलिन हो खेल रहा है।
महारोग भी फैल रहे हैं
मानव को जो घेर रहे हैं।
मानव खुद से दूर हुआ है
अहंभाव में चूर हुआ है।
परमशक्ति को जान न पाया
देहभान में मगरुर हुआ है।
अब जो समय कुछ शेष बचा है
उसमें पुण्य संचय हो रहे हैं।
सज्जन देव बन जाने को
अपनी आत्मा सजा रहे हैं ।
मानव अब भी सो रहा है
स्वयं से बहुत दूर हुआ है।
सत्य ज्ञान की प्यास नहीं है
अनमोल जीवन खो रहा है।
कवि का परिचय
नाम -विनय अन्थवाल
शिक्षा -आचार्य (M.A)संस्कृत, B.ed
व्यवसाय-अध्यापन
मूल निवास-ग्राम-चन्दी (चारीधार) पोस्ट-बरसीर जखोली, जिला रुद्रप्रयाग उत्तराखंड।
वर्तमान पता-शिमला बाईपास रोड़ रतनपुर (जागृति विहार) नयागाँव देहरादून, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।