युवा कवि विनय अन्थवाल की कविता-अज्ञानान्धकार
अज्ञानान्धकार
तिमिर ये कैसा प्रसर रहा है
मूढ़ मानव बन रहा है।
अवनि भी अब रुठ रही है
तरुणी निर्लज्ज बन रही है।
नेह अब तो मदन बना है
सूर सदृश मनुज बना है।
मनुजमेधा मलिन बनी है
मेदिनी भी कर्कश बनी है ।
घट सदन प्रस्तर बना है
मन वंचना में रम रहा है ।
“अनात्मज्ञ”
सर्वोत्तम रचना मानव है
प्रज्ञा मानव की उत्तम है।
देहभान ये व्यर्थ ही है
जन्म सार्थक भी नहीं है
आत्मज्ञान का दीप जले जो
तभी तो कर्म समर्थ भी हो।
अज्ञानता भी व्यर्थ ही है
ज्ञान का महत्व ही है।
अज्ञ बनकर नष्ट न हो
अभिज्ञ बनकर विशिष्ट ही हो।
कवि का परिचय
नाम -विनय अन्थवाल
शिक्षा -आचार्य (M.A)संस्कृत, B.ed
व्यवसाय-अध्यापन
मूल निवास-ग्राम-चन्दी (चारीधार) पोस्ट-बरसीर जखोली, जिला रुद्रप्रयाग उत्तराखंड।
वर्तमान पता-शिमला बाईपास रोड़ रतनपुर (जागृति विहार) नयागाँव देहरादून, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।