शिक्षिका एवं कवयित्री डॉ. पुष्पा खण्डूरी की कविता-किसी की जरूरत तो बन के देखो
ग़र ख्वाहिश जो बन सके ना ॥
किसी की मजबूरी को दूर कर तू
ग़र कोई मजबूर रह सके ना ॥
ख़ुदा खुद तेरी इबादत में होंगे।
उसने तुझे समरथ जो है बनाया
हैरत में है खुद ख़ुदा भी
यही सोच के उस ख़ुदा ने
जो ख़ुद ना कर सका वो !
जो तूने है कर दिखाया।
किसी की जरूरत तो बनके देखो
ख्वाहिश जो बन सके ना
ख़ुदा जो काम कर सका न
वो मुकाम तुझको हासिल
किसी की जरूरत तो बन देखो
ख्वाहिश जो बन सके न ।
जिस का नहीं मुकद्दर कभी भी
उसके भी मुकद्दर का तुम
कभी सिकंदर तो बन के देखो ,
फिर जीने में जो मज़ा है
वो कभी जिन्दगी में नहीं मिलेगा।
किसी की जरूरत तो बन के देखो
ख्वाहिश जो बन सके ना॥
कवयित्री का परिचय
डॉ. पुष्पा खण्डूरी
एसोसिएट प्रो. एवं हिंदी विभागाध्यक्ष
डीएवी (पीजी ) कालेज देहरादून, उत्तराखंड। (लेखिका देहरादून में डीएवी छात्रसंघ के पूर्व लोकप्रिय अध्यक्ष एवं भाजपा नेता विवेकानंद खंण्डूरी की धर्म पत्नी हैं। कविता और साहित्य लेखन उनकी रुचि है)
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।