युवा कवयित्री किरन पुरोहित की स्वतंत्र विधा की कविता-सूरज का सफर
सूरज का सफर
दिग -दिगंत युग आदि -अंत ,ले उर में जीवन को अनंत ।
तप में हो मानो लीन संत ,फैलाता जाए ज्योति प्रखर ।।
अनवरत है सूरज का सफर ,अनवरत है सूरज का सफर ।।1।।
अंधकार से पूर रात , भय की लय से चूर रात ।
जीवन रहता मौन सुप्त , कई पाप जागते गुप्त ।।
अंधेर उजाले का समर , अनवरत है सूरज का सफर।।2।।
जब गहराता अंधकार ,प्राची में होता उदंकार ।
सृष्टि फिर सजने लगती ,वसुंधरा हंसने लगती ।।
छा जाती आभा अमर , अनवरत है सूरज का सफर ।।3।।
जल कुंण्डों में खिलते कमल , नभ हो जाता है विमल ।
प्राची उदित हुए हैं सूर्य ,खुलते मंदिर -बजे तूर्य ।।
शुभता सूर्य की रहे अजर , अनवरत है सूरज का सफर ।।4।।
रवि की ज्योति जब जलती ,जगती आंखों को मलती ।
घसेरियां जंगल जातीं , भोर हुई मंगल गाती ।।
जग जाती दुनिया सकल, अनवरत है सूरज का सफर ।।5।।
चहुंओर फैली है धूप ,सजा हुआ दुनिया का रूप ।
कई काम हैं कई सर्ग , सूरज को चढ़ता प्रथम अर्घ्य ।।
शुभता लाने का शुभ असर , अनवरत है सूरज का सफर।।6।।
नभ पर चलते आदिदेव , प्रेरणा पुंज हैं एकमेव ।
कभी-कभी तूफां आते ,फिर भी सूर्य बढ़ते जाते ।।
कहते हैं लक्ष्य पर कसो कमर , अनवरत है सूरज का सफर।।7।।
काले बादल क्या सूर्य ढकें ,चमक सूर्य की नहीं छिपे ।
दुनिया कितना भी ढ़कती ,योग्यता योग्य की ना छिपती ।।
सूरज देता यह सीख अमर,अनवरत है सूरज का सफर।।8।।
कवयित्री का परिचय
नाम – किरन पुरोहित “हिमपुत्री”
पिता -दीपेंद्र पुरोहित
माता -दीपा पुरोहित
जन्म – 21 अप्रैल 2003
अध्ययनरत – हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय श्रीनगर मे बीए प्रथम वर्ष की छात्रा।
निवास-कर्णप्रयाग चमोली उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।