हिन्दी दिवस पर डॉ. मुनिराम सकलानी मुनींद्र की कविता-राष्ट्र भाषा हिन्दी
राष्ट्र भाषा हिन्दी
जन-गण-मन की अभिलाषा राष्ट्र भाषा हिन्दी,
भारत मां के ललाट पर चमकती यह स्वर्ण बिन्दी,
भारतीय भाषाएं हैं इसकी बहिनें
जैसे पंजाबी-सिन्धी,
हृदय भाव समान सभी का, ऐक्य
भाव से हैं जिन्दी।
भारतीय अस्तिमा व स्वाभिमान की यह सुदृढ़ कडी,
सांस्कृतिक विरासत,और जीवन-मूल्यों से जुडी,
विदेशों में फैल रही है मारीशस-गुयाना इसके सबूत,
प्रेम व सौहार्द से करती राष्ट्र एकता को मजबूत।
यह वह वाणी, आजादी का सन्देश सूदूर जिसने फैलाया,
गांधी, सुभाष, पटेल, बिनोबा आदि ने जिसे अपनाया,
शहरों से सूदूर गांव तक जन-जन को इसने जगाया,
पराधीनता के प्रतीक अंग्रेजों को भारत से दूर भगाया।
देश हुआ आजाद मगर भाषा की अब भी व्याप्त गुलामी,
सम्मान मिले कैसे विदेशों में बिन स्वभाषा और स्ववाणी,
बिन अंग्रेजी के क्या चीन, जापान, रूस बढे न पथ पर ,
स्वभाषा को अपनाने से, क्या गौरव स्वदेश का हुआ कमतर।
प्रसार न होता अंग्रेजी का यदि होता न उनमें स्वाभिमान,
फैलती जा रही है हर जगह इसका उनको है अभियान,
स्वदेश और स्वभाषा विकास के,हम भी हैं पूर्ण अभिलाषी ,
राज करे देश में अंग्रेजी, हाय! हिन्दी अपने ही घर मे दासी।
दिल की धडकने हैं सभी भाषाएं प्यार से सबको जोडो,
भारतीय भाषाई एकता के इस महान सेतु को मत तोडो,
टूटे हुए दिलों को जोडकर हिन्दी करगी प्रेम का संचार,
एक राष्ट्र, एक ध्वज, एक राजभाषा का होगा सपना साकार।
कवि का परिचय
डॉ. मुनिराम सकलानी, मुनींद्र। पूर्व निदेशक राजभाषा विभाग (आयकर)। पूर्व सचिव डा. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल हिंदी अकादमी,उत्तराखंड। अध्यक्ष उत्तराखंड शोध संस्थान। लेखक, पत्रकार, कवि एवं भाषाविद।
निवास : किशननगर, देहरादून, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।