शिक्षिका हेमलता बहुगुणा की कविता-चांद और चांदनी

चांद और चांदनी
एक दिन चांद ने
चांदनी से आकर कहा
तुम इतनी सुन्दर क्यों हो
मुझको आकर तो बतला ।
तब चांदनी चांद से बोली
मेरी बातों पर ध्यान लगा
मैं किसी से ईर्ष्या नहीं करती
ईर्ष्या को मन से दूर भगा।
अपने से बढ़कर ही
सबको मैं समझती
इसलिए तो मेरे चेहरे पर
कोई सिकंज नहीं रहती।
नहीं किसी प्रकार का
कोई दाग दिखाई देता है
स्वच्छ पहनावा स्वच्छखाना ही
मेरा रूप निखारता है।
चांद अपने दाग के बारे में
अब सोचने लगता है
हट जायेगा यह दाग भी
जो मेरे चेहरे पर दिखता है।
इस तरह चांद भी अब
अच्छाई मन में भर लेता है
और पूर्णिमा के दिन को
साफ चमकने है लगता।
कवयित्री का परिचय
नाम-हेमलता बहुगुणा
पूर्व प्रधानाध्यापिका राजकीय उच्चतर प्राथमिक विद्यालय सुरसिहधार टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड।
Bhanu Bangwal
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