ललित मोहन गहतोड़ी की कविता-नाकोईलाजशर्म, नाकोईदीनधर्म

नाकोईलाजशर्म… नाकोईदीनधर्म…
पहले दिखते नेता पैदल,
फिर दौड़ लगाते कारों में।
हो रहे माला माल हैं नेता,
माल छुपाये भकारों में।।
नाकोईलाजशर्म… नाकोईदीनधर्म…
समय नहीं है कहते फिरते,
नेता जी तीज त्योहारों में।
आम दिनों की बात तो छोड़ो,
मिलते ही नहीं रविवारों में।।
नाकोईलाजशर्म… नाकोईदीनधर्म…
अपने ही धन के लिए देखो,
रोती जनता दरबारों में।
फर्क नहीं पड़ना नेता को,
जनता गिनती बेचारों में।।
नाकोईलाजशर्म… नाकोईदीनधर्म…
कैसे बताओ कहां से बरसा,
जमकर पांच इन सालों में।
जनता के धन की लूट मची है,
चर्चा यही गली चौराहों में।।
नाकोईलाजशर्म… नाकोईदीनधर्म…
दलबदलू नेताओं को देखो,
लगे फिर अबकी बारी में।
आवत जावत है रोज लगी,
सिंहासन की तैयारी में।।
नाकोईलाजशर्म… नाकोईदीनधर्म…
कवि का परिचय
नाम-ललित मोहन गहतोड़ी
शिक्षा :
हाईस्कूल, 1993
इंटरमीडिएट, 1996
स्नातक, 1999
डिप्लोमा इन स्टेनोग्राफी, 2000
निवासी-जगदंबा कालोनी, चांदमारी लोहाघाट
जिला चंपावत, उत्तराखंड।
Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।