कवि श्याम लाल भारती की कविता-क्यों कलम तोड़ने को आतुर
क्यों कलम तोड़ने को आतुर
मै भी रोज स्कूल जाना चाहूं,
क्यों घर में कैद करने को आतुर तुम।
मैं भी पढ़ना लिखना चाहूं,
क्यों कलम तोड़ने को आतुर तुम।।
मैं भी स्वच्छंद खेलना चाहूं,
क्यों खिलौने तोड़ने को आतुर तुम।
अब तो मान लो कोरोना भाई,
चुपचाप वतन से चले जाओ तुम।
मैं भी खुली हवा में आना चाहूं,
क्यों मास्क लगवाने को आतुर तुम।
पर हार नहीं मानूंगा तुमसे अब मैं,
अब तो दूर चले जाओ तुम।।
मानता कसूर होगा इंसानों का,
क्यों मासूमों को मिटाने को आतुर तुम।
अरे हमने कुछ ही बसंत देखे जीवन के,
पीड़ा हमारे मन की कुछ समझो तुम।।
मैं भी सपनों की उड़ान भरना चाहूं,
क्यों पंख कतरने को आतुर तुम।
माफ नहीं करेगा खुदा तुमको,
अब तो बहुत दूर चले जाओ तुम।
गलतियां हमारे खुद ही कर रहे,
क्यों बाजार जाने को मानव आतुर तुम।
अगर चाहते जीवन बच्चों का तो,
लोक डॉउन नियम निभाकर देखो तुम।।
करते हैं बड़ों से, हम एक प्रार्थना,
क्यों बेवजह बाहर आने को आतुर तुम।
टूट जाएगा चक्र कोरोना का,
हाथ न मिलाओ किसी से तुम।।
हम भी चाहते स्कूल जाएं हम,
क्यों रास्ता रोकने को आतुर तुम।
मम्मी पापा दीदी भैया,
कोरोना के नियम निभाओ तुम।।
मैं भी “”””””””””””””””””””””””””चाहूं,
क्यों”””””””””””””””””””आतुर तुम।
मैं””””””””””””””””””””””””””””चाहूं,
क्यों कलम””””””””””””””””””तुम।।
कवि का परिचय
श्याम लाल भारती राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसे लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।