कवि श्याम लाल भारती की कविता- हृदय में बह रही प्रेम की धारा

हृदय में बह रही प्रेम की धारा
आज न जानें मेरे हृदय में क्यों,
बह रही प्रेम की रस धारा।
उमड़ रहा सैलाब हृदय में प्रेम का,
किन्तु वो शशि मुख कहां,
जिसके लिए बह रही गीतों की धारा।।
लग रहा वन में मेरे,
अब मधुर गीतों का गुंजन होगा।
इन गीतों के मधुर लय से,
नए नए पुष्प मेरे वन में खिलेगें।
हर छोर हर पोर,
महक से इनकी महकेंगे।
और उस सुगंध में महक होगी,
फूलों की बहेगी अविरल रस धारा।।
पर वो जिसके लिए,
हृदय में प्रेम व्याकुल मेरा।
उस का मुख शशि जैसा है प्यारा,
मैं उसको अपने हृदय के,
गहरे छाले दिखाना चाहूं।
क्योंकि उसके लिए मेरे हृदय में,
गुंजन हो रही है गीतों की धारा।।
पर क्या उसको मेरा दुख नहीं,
दिखता इस धरा में।
क्या वो किसी और पर है वारी,
पर यकीन है उस पर मुझको।
उसके कोमल हृदय में,
मेरे लिए प्रेम अथाह है सारा।।
मेरे गीत क्या मिला सकेंगे,
उसके उर और मेरे हृदय को।
आस लिए पथ पर मैं चल रहा,
नहीं परवाह कांटों की,
चाह बस यही वो बने जीने का सहारा।।
उसकी निश्छल,निष्पाप जवानी,
क्या मेरे गीतों की बनेगी दीवानी।
मन अशांत सा भटक रहा मेरा,
क्या उसके हृदय में,
बहेगी मेरे मधुर गीतों की धारा।।
आज”””””””””””””””””””””””””क्यों।
बह”””””””””””””””””””””””धारा।।
कवि का परिचय
श्याम लाल भारती राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसे लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।