कवि एवं साहित्यकार दीनदयाल बन्दूणी की गढ़वाली गजल-रखड़ि त्युहार
रखड़ि त्युहार
रखड़ि धागु-प्यार कु धागु, कच्चु न पड़णीं दे.
जल्मभरा भै-भैंण्यूं प्यार, फल्णी-फुलणीं दे..
सालौं-साल मनाण हमन, प्रेम-प्यार-त्योहार,
बाप-दादौं की बड़यीं रीत, फुल्णी-झुलणीं दे..
थाऴीं सजौ- दिवा जऴौ, भैंण- तेरी आली,
उठ फरज निभौ, ज्यू भरि स्वागत करणीं दे..
अहा ! कनि उमंग-कनि तरंग, रैंद भैंण्यूं ज्यूम,
अपणु-अपणुपन जतौ तु, औरि ये बढणीं दे..
एक हथ्म-बंधैले रखड़ि, एक हथ्ल-आसिस दे,
अपड़ी-भैंण्यूं मान-सम्मान, कतै न घटणीं दे..
बनी-बनी पकवान बड़ै, आज कु दिन मनांण,
लाड-प्यार से भै-भैंण्यूं , फूल सि- खिलणीं दे..
‘दीन’ कनि भली- रीत-प्रीत, कनु भलु बंधन,
बचन ले- अपड़ छैंद, प्यार- प्रेम न मिटणीं दे..
कवि का परिचय
नाम-दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’
गाँव-माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य-सन् 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।