Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

April 19, 2025

कवि एवं साहित्यकार दीनदयाल बन्दूणी की गढ़वाली गजल-रखड़ि त्युहार

कवि एवं साहित्यकार दीनदयाल बन्दूणी की गढ़वाली गजल-रखड़ि त्युहार।

रखड़ि त्युहार

रखड़ि धागु-प्यार कु धागु, कच्चु न पड़णीं दे.
जल्मभरा भै-भैंण्यूं प्यार, फल्णी-फुलणीं दे..

सालौं-साल मनाण हमन, प्रेम-प्यार-त्योहार,
बाप-दादौं की बड़यीं रीत, फुल्णी-झुलणीं दे..

थाऴीं सजौ- दिवा जऴौ, भैंण- तेरी आली,
उठ फरज निभौ, ज्यू भरि स्वागत करणीं दे..

अहा ! कनि उमंग-कनि तरंग, रैंद भैंण्यूं ज्यूम,
अपणु-अपणुपन जतौ तु, औरि ये बढणीं दे..

एक हथ्म-बंधैले रखड़ि, एक हथ्ल-आसिस दे,
अपड़ी-भैंण्यूं मान-सम्मान, कतै न घटणीं दे..

बनी-बनी पकवान बड़ै, आज कु दिन मनांण,
लाड-प्यार से भै-भैंण्यूं , फूल सि- खिलणीं दे..

‘दीन’ कनि भली- रीत-प्रीत, कनु भलु बंधन,
बचन ले- अपड़ छैंद, प्यार- प्रेम न मिटणीं दे..

कवि का परिचय
नाम-दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’
गाँव-माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य-सन् 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।

Website |  + posts

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page