हिमालय दिवस पर पढ़िए गढ़वाली कविताः हिमालै दिवस, लेखक-दीनदयाल बन्दूणी

हिमालै दिवस
बंदन-अभिनंदन तेरु, मुंड-झुकांदी हिमालै.
भू- मंडल म अकेलू, राज- चलांदी हिमालै..
साक्यूं बटि खणु रैकि, हमरि रक्षा करि तिन,
दग्ड़म- पांणि पिलै, मनख्यूं- बचांदी हिमालै..
रूड़्यूंम सूखि जंदि-धारा-पंदेरा, रौली-गदेरि,
पांणि बगैर- रूखु पड़ि, किलै डरांदी हिमालै..
जब बड़ौं-करि बिणांस हमन, खरड़ि कैं डाॅडी,
बसगाऴ खगन- बगन करि, रुलांदी हिमालै..
सबि कुछू – बरोबरि, खपद जग – जीवन म.
अति सूखु-अति बरखा करि, चितांदी हिमालै..
मेरा उत्तराखण्डै, सीरा- मकोट छै तू हिमालै,
बारा बरसौं म-माँ नंदा देवी, भट्यांदी हिमालै..
‘दीन’ आज त्यारु दिन, रुजि-बुजि मनौंला हम,
सुवेर-उठि, मुखड़्यूं- चलक्वार ल्यांदी हिमालै..
कवि का परिचय
नाम-दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’
गाँव-माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य-सन् 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।
Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।