कवि एवं साहित्यकार दीनदयाल बन्दूणी की गढ़वाली गजल-बदलेंदु-बग्त
बदलेंदु-बग्त
सिवऴु सी जमि ग्या, दिल- दिमाग फरि.
बस नि रौ, भैर-भित्रा जऴदि आग फरि..
क्य ब्वन-कैम ब्वन, कुछ नि सोचेंदु किलै,
बोलि दींद फकम, एक – हैंका नाक फरि..
चैना द्वी रोटि- नि मीलदीं, मीनता बिगर,
भरोसु नि रौ, आज अपड़ा हि भाग फरि..
यकुळांस अर स्वारथा बीचम, अटग ज्यू,
धध्यांद रै सरैल, जूं नि रिंगी- कान फरि..
अफ त ठुल आदिम बड़िग्यो , बैठि- बैठि,
कानि-किस्सा गठेद्या, एक-हैंका मान फरि..
एक समड़ीं सि- लगद आज, सरि दुन्या,
कबि रीस भी ऐ जांद, यूंका ये ज्ञान फरि..
‘दीन’ ! यथ- वथा यूँ झमेलौं, छोड़- अब,
अब बग्त च- ध्यान रख, ज्यू-ज्यान फरि..
कवि का परिचय
नाम-दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’
गाँव-माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य-सन् 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।