कवि एवं साहित्यकार दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’ के गढ़वाली दोहे-अचकल्यूं 2
अचकल्यूं (भाग-2)
कबी- कबी ता इनु लगद, जीवन ह्वे आसान.
सैरू कुटम दगणै चा, हम छवां- बड़ भग्यान..
जमा पूंजिम खैण्यूं चा, ज्यू भलु-भलू खुज्यांद..
जब-जब नौकरि याद ऐ, सोचम ज्यू पड़ि जांद.
कब तक चालला यो दिन, ज्यू-जांणी नी पांदु.
जंक ना लगि जा मनख्यूं , पुजण पोणलू छांदु..
कड़की म फड़की लगिगे, तन्खा अधा-अधूरि.
घरम नौना – तौनौं की, मन्सा – नि हूंणी पूरि..
फऴ-सब्ज्यूं- भौ न पूछा, तेल- पांणि ह्वे मैंगु.
रोजा कि- उठा – पोड़ मा, चिरिगे- लूंगी – लैंगु..
इस्कूलौं की- फीस पूरि, पढ़ै च अधा- अधूरि.
लैपटॉप म- पड़ै हूंण, ओ- बि- चैंणू जरूरि..
‘दीन’ अचकल्यूं-क्य ह्वेगे, अंत कखी नी मीलु.
भूक – चट-पट लै जांणी , कंगलिम आटु गीलु..
कवि का परिचय
नाम-दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’
गाँव-माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य-सन 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
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