युवा कवि कंदर्प पंड्या की बसंत पंचमी पर कविता-सूखे पत्ते कहते हैं

सूखे पत्ते कहते हैं
सूखे पत्ते कहते हैं, सूख गया सो झड़ गया,
अपनो से बिछड़ गया, पतझड़ के मौसम ने मुझे,
एक अनाथ सा कर दिया है, दूर रहता हूँ अब अपनो से,
मैं भटक गया हूँ राहो में, न गुरुर है किसी बात का,
हर घर दरवाजो से, मैं निकाला जाता हूँ,
फिर राहो मे आजाता हूँ, वहाँ मैं कुचला जाता हूँ ,
दूर रहकर सबसे मैं, अब तन्हा हो चला हूँ,
कुछ दिनों तक सड़को पर, फिर मै खेतों को चला जाता हूँ,
खेतो की मिट्टी से दोस्ती कर, मैं खाद बन जाता हूँ,
मुझे बिछड़ने का दुःख, सदियो तक सताता है,
पर नए परिवारों में, मुझे दुलार मिलता है,
मै नई जिंदगी जीता हूँ ,
फिर भी मैं भूला दिया जाता हूँ,
मैं यूं ही बसंत में अपना रुख दिखलाता हूं।
कवि का परिचय
नाम-कंदर्प पंड्या
पेशे से छात्र युवा हिंदी लेखक कंदर्प पण्डया चिखली, डूंगरपुर, राजस्थान के एक लेखक हैं। वे अपनी उच्च माध्यमिक शिक्षा सरकारी विद्यालय से पूरी कर चुके हैं। वर्तमान में वह मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर से बीएससी में अध्ययनरत हैं। वे अपने जुनून के रूप में विगत एक वर्ष से कविता लिख रहे हैं।
मो. न.- 7597133129
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।