युवा कवि वरुण सिंह गौतम की कविता- ठहरी उथली कल्पनाएं
मैं तुम्हें जब देखता हूं अपनी ठहरी उथली कल्पनाओं से
एक अंतर्द्वंद्व – सी स्वर झंकृत होकर बिखेर देती
स्त्री नहीं हूं किन्तु एक पुरुष का प्रेम उमड़ पड़ता है
तुम्हें अपने बाहों में भर लूं और चूमूं तेरी अंग – अंग को
तेरे काले – काले केश की गहराइयों में देख तुझमें ही
आक्रान्ताओं के चरमोत्कर्ष के अंतिम बिंदु के सीमा
परिधियों की भांति हृदयों के घूर्णन गति के परिमाप
अपने परिधि पाई में समेटने के प्रश्नचिह्न पर पूर्ण विराम है
तेरे ओंठ के उपर काली लाली युक्त रंग अंग को जुन्हाई करती
कहती प्रशस्त कर, दे दे दो घूंट मद तुझे जी भर देखूं और सौन्दर्य, कहूं प्रणाम!
तुम्हारी देहगंध के लिए जलमय में मंझ ते तुझे वर्णन करूं
नयन भौंह बिन्दी सिन्दूर नथूनई चूड़ी बाली से अलंकृत कर
इन रहस्यों में, मैं गोता – सी बस तुझे ही घूंट से मद में समेट लूं।
कवि का परिचय
वरुण सिंह गौतम बिहार के रतनपुर, बेगूसराय जिले के रहने वाले हैं। वर्तमान में वह काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी से हिन्दी स्नातक के लिए अध्ययनरत हैं। इनकी पहली पुस्तक मँझधार ( काव्य संग्रह ) है। इसे उन्होंने कोरोना काल के दौरान लिखा।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।