युवा कवयित्री प्रीति चौहान की कविता- क्या लिखूं इन हालातों पर
क्या लिखूं इन हालातों पर….
इन बदलते ख्यालातों पर..
सोचा क्या कभी ?
क्यों ये हालात इतने बदलने से लग गए
क्यों ज़िन्दगी इतनी सस्ती सी लगने लग गई
क्या लिखूं इन हालातों पर?
रुक रुक कर मंजर एक ख़ौफ़ का होता जा रहा
कुछ उम्मीदे टूट रही है…
कुछ ख्वाइशें छुट रही है…
मंजर डरावना सा हो रहा
हालातों के साथ साथ रिश्तों की पहचान करा रहा
कुछ अपने है जो हर घड़ी साथ रहे
तो किसी ने किनारा कर लिया…
कोई इंसानियत का फर्ज निभा रहा
तो कोई अपने हैवानियत रुप में आ रहा…
और यूँ लिखने बैठी हूँ तो सोचूँ…
क्या लिखूं इन उखड़ती सांसो पर?
जो अभी संग चलना चाहती है
पर महज़ हवा न मिलने पर साथ छोड़ जा रही है
और फिर देखूं एक निगाह से उस तरफ..
जहां कभी जंगल हुआ करते थे और अब….
सिर्फ मकानों की कतारें है…
तो सोचूँ उन तमाम रुकती सांसो के लिए जिम्मेदार कौन है??
शायद नही यकीनन ये मंजर इतना ख़ौफ़नाक नही होता..
अगर इंसान इतना खुदगर्ज़ न होता…
अपनी तरक्की के आगे कुछ नज़र आया ही नही
इन हालातों का दोष दे किसको
हर एक शख्श शामिल है इसमें…
पर कसूर किसका है ये पता नही
बस हर एक शख्श शामिल है इसमें
कसूर किसका है पता नही……
कवयित्री का परिचय
नाम-प्रीति चौहान
निवास-जाखन कैनाल रोड देहरादून, उत्तराखंड
छात्रा- बीए (द्वितीय वर्ष) एमकेपी पीजी कॉलेज देहरादून उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।