युवा कवयित्री किरन पुरोहित की कविता-यूं ही रहो मेरे प्रभु
यूं ही रहो मेरे प्रभु
आज मैं पहुंची जहां हूं, तुम मुझे लाए यहां ।
बात वो आती मुझे, जो तुमने सिखलाई सदा ।
तुम सूर्य के चढने-उतरने में सदा साथी प्रभु ।
जिस तरह हो मेरे दिल में, उस तरह यूं ही रहो ।।1।।
तालियों की गूंज में, तेरी कृपा भूलूं नहीं ।
फिर जमी से ना मिलूं, ऊंचाई वो छूऊं नहीं ।
अपनी प्रशंसा के नशे में, ना कभी डूबूं प्रभु।
तुमको बसाए हूं ह्दय में, व बसाए ही रखूं ।।
तुम ही थे मेरे साथ में, मैं जब थी अंधकार में ।
गुमनाम थी, हारी हुई , खोई हुई संसार में ।।
तुम आज भी मेरी सफलता, में मेरे साथी प्रभु ।
जिस तरह हो मेरे दिल में उस, तरह यूं ही रहो ।।
ना कोई देखे तुम्हें पर, मैं तो देखूं बस तुम्हें ।
हर जीत में, हर हार में, हर पल तुम्हें ,पल पल तुम्हें ।
तुम ही हो मेरी जिंदगी, तुमसे ही मैं जिन्दा प्रभु।
जिस तरह हो मेरे ह्रदय में, उस तरह यूं ही रहो ।।
कवयित्री का परिचय
नाम – किरन पुरोहित “हिमपुत्री”
पिता -दीपेंद्र पुरोहित
माता -दीपा पुरोहित
जन्म – 21 अप्रैल 2003
अध्ययनरत – हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय श्रीनगर मे बीए प्रथम वर्ष की छात्रा।
निवास-कर्णप्रयाग चमोली उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।