Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

November 15, 2024

युवा कवयित्री किरन पुरोहित की कविता-यूं ही रहो मेरे प्रभु

कवयित्री हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय श्रीनगर मे बीए प्रथम वर्ष की छात्रा हैं।

यूं ही रहो मेरे प्रभु

आज मैं पहुंची जहां हूं, तुम मुझे लाए यहां ।
बात वो आती मुझे, जो तुमने सिखलाई सदा ।
तुम सूर्य के चढने-उतरने में सदा साथी प्रभु ।
जिस तरह हो मेरे दिल में, उस तरह यूं ही रहो ।।1।।

तालियों की गूंज में, तेरी कृपा भूलूं नहीं ।
फिर जमी से ना मिलूं, ऊंचाई वो छूऊं नहीं ।
अपनी प्रशंसा के नशे में, ना कभी डूबूं प्रभु।
तुमको बसाए हूं ह्दय में, व बसाए ही रखूं ।।

तुम ही थे मेरे साथ में, मैं जब थी अंधकार में ।
गुमनाम थी, हारी हुई , खोई हुई संसार में ।।
तुम आज भी मेरी सफलता, में मेरे साथी प्रभु ।
जिस तरह हो मेरे दिल में उस, तरह यूं ही रहो ।।

ना कोई देखे तुम्हें पर, मैं तो देखूं बस तुम्हें ।
हर जीत में, हर हार में, हर पल तुम्हें ,पल पल तुम्हें ।
तुम ही हो मेरी जिंदगी, तुमसे ही मैं जिन्दा प्रभु।
जिस तरह हो मेरे ह्रदय में, उस तरह यूं ही रहो ।।

कवयित्री का परिचय
नाम – किरन पुरोहित “हिमपुत्री”
पिता -दीपेंद्र पुरोहित
माता -दीपा पुरोहित
जन्म – 21 अप्रैल 2003
अध्ययनरत – हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय श्रीनगर मे बीए प्रथम वर्ष की छात्रा।
निवास-कर्णप्रयाग चमोली उत्तराखंड।

Website | + posts

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page