युवा कवि ब्राह्मण आशीष उपाध्याय की कविता-मैं लंकेश रावण हूँ
मैं लंकेश रावण हूँ अपना प्रारब्ध स्वयं मैंने चुना था ।
मैं ऋषि विश्रवा का पुत्र और महर्षि पुलत्स्य का नाती था।
मेरे शत्रु भी कहते थे कि दशानन बड़ा ही प्रतापी था।1।
मुझे घमण्डी और दुराचारी कहने वालों गौर से सुनो।
हरि को भी स्वयं आना पड़ा,जब मेरे बारे में सुना था।2।
मैं लंकेश रावण हूँ अपना प्रारब्ध स्वयं मैंने चुना था ।
पाप किया मैंने हर लाया था मैं जनकदुलारी को।
रघुकुल की आन पतिव्रता पवित्र पूजनीय नारी को।3।
उन्होंने कई बार अवसर दिया,मुझे क्षमा दान पाने का।
मैं उससे लड़ने चला था,जो हरि मुझसे कई गुना था।4।
मैं लंकेश रावण हूँ अपना प्रारब्ध स्वयं मैंने चुना था।
खर दूषन त्रिसिरा और बाली को मार दिया मैंने सुना था।
अपने राक्षस कुल के मुक्ति का स्वप्न मैंने भी बुना था।5।
जानता था मैं भी मारा जाऊँगा हार जाऊँगा नारायण से।
युद्ध करूँगा राम से,राम ने भी तो मेरे बारे में सुना था।6।
मैं लंकेश रावण हूँ अपना प्रारब्ध स्वयं मैंने चुना था ।
युगों से उत्सव मनाते हो और मुझे जलाते हो।
मैं पापी और दुराचारी था अपनी पीढ़ियों को बताते हो।7।
माफ कर दो मुझे मैंने तो सिर्फ एक हरण ही किया था।
बलात्कारियों को छोड़ तुमने जलाने के लिए मुझे ही चुना था।8।
मैं लंकेश रावण हूँ अपना प्रारब्ध स्वयं मैंने चुना था ।
कवि का परिचय
नाम-ब्राह्मण आशीष उपाध्याय (विद्रोही)
पता-प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश
पेशे से छात्र और व्यवसायी युवा हिन्दी लेखक ब्राह्मण आशीष उपाध्याय #vद्रोही उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ जनपद के एक छोटे से गाँव टांडा से ताल्लुक़ रखते हैं। उन्होंने पॉलिटेक्निक (नैनी प्रयागराज) और बीटेक ( बाबू बनारसी दास विश्वविद्यालय से मेकैनिकल ) तक की शिक्षा प्राप्त की है। वह लखनऊ विश्वविद्यालय से विधि के छात्र हैं। आशीष को कॉलेज के दिनों से ही लिखने में रुचि है। मोबाइल नंबर-75258 88880
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
वाह बहुत सुन्दर रचना