दृष्टि दिव्यांग डॉ. सुभाष रुपेला की कविता-हो मौज बहार कि आया नया साल
हो मौज बहार कि आया नया साल
छा जाए नया साल कर दफा हर मजबूरी।
बेहतर हो नया साल कि हों सब मांगे पूरी।।
मिल जाए लक्ष्मी इतनी कि खरीद सकें आप
अपने मन की चीज़ें ज़रूरी ग़ैर-ज़रूरी।।
छाए बहार आपके द्वार हो कड़ा पहरा,
कि दुम दबा भागे दुख मिटती देख मगरूरी।।
काम में न रहे देरी, बरक़त की लगे ढेरी!
कामयाबी मिले कि हो प्रशंसा भूरि-भूरी।।
झड़ें पत्ते उदास, आएं नए जवान पास!
होंठों से निकले दुआ कि हों मुरादें पूरी।।
मिले दौलत का अंबार सब यारों से प्यार,
हो स्फूर्ति कि दौड़ मिल्खा संग लगाएं पूरी।।
धूल-सी भूलें झड़ें, फूल-सी ख़ुशियाँ फूलें,
बरसें सुख इस बरस कि रज़ा न रहे अधूरी।।
बरस ये इतना ज़्यादा सोना बरसा जाए,
ओले लूटे कुंभकर्ण नींद छोड़ अधूरी।।
कवि का परिचय
डॉ. सुभाष रुपेला
रोहिणी, दिल्ली
एसोसिएट प्रोफेसर दिल्ली विश्वविद्यालय
जाकिर हुसैन कालेज दिल्ली (सांध्य)
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।