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February 7, 2025

नए साल के आगमन पर शिक्षक विजय प्रकाश रतूड़ी की कविता-बन मनोहर आप आना

बन मनोहर आप आना।

साल बीस बीस को अब,
हो सके तो भूल जाना,
साल बीस इक्कीस सुन लो,
बन मनोहर आप आना।

ना उमंगे ना तरंगें,
और ना ही नाच गाना।
साल बीस बीस तुमको,
याद क्यों रक्खे जमाना।

ना बसंती कोकिला थी,
ना बरातें थी लुभाती।
मेले, त्योहार, उत्सव,
ना हुआ कहीं आना जाना
साल बीस बीस तुमको,
याद क्यों रक्खे जमाना।

शादियां फीकी रहीं सब,
डर का साया साथ जब तब,
फूल के सौंदर्य में भी,
नहीं था शोभन पुराना।
साल बीस बीस तुमको,
याद क्यों रक्खे जमाना।

दूर से तकते रहे हम,
सब बगलगीर अपने।
ना गले से लगा पाये,
हृदय के वे मीत सपने।
प्रेम पर भारी पड़ा था,
जान को जोखिम में लाना,
साल बीस बीस तुमको,
याद क्यों रक्खे जमाना।

देखने नहीं गया कोई,
व्याधि ग्रसित निज सुजन को।
सांस अंतिम में सहारा,
ना मिला अधिसंख्य जन को।
दर्श अंतिम को तरसता,
ही रहा अपना विराना,
साल बीस बीस तुमको,
याद क्यों रक्खे जमाना।

भय का शासन जम गया था,
तोष गायब था जगत से।
हंसी कोरी हंसी सबने,
अश्रु रोके थे जतन से।
सांस थम सी जाती थी,
जब गली में सुनते कोरोना।
लोग भूल जाते थे तब,
हंसना और मुस्कुराना,
साल बीस बीस तुमको,
याद क्यों रक्खे जमाना।

बालपन के खेल करतब,
सब अचानक थम गये थे।
कैद में योवन बुढापा,
पैर सब के जम गये थे।
रोजगार पर लगा ताला,
श्रमिक अपने चल पड़े थे।
पैर नंगे चल पड़े वे।
छोड़ दौलत का खचाना।
साल बीस बीस तुमको,
याद क्यों रक्खे जमाना।

साल बीस बीस को अब,
हो सके तो भूल जाना।
साल बीस बीस तुमको,
याद क्यों रक्खे जमाना।
साल बीस इक्कीस सुन लो,
बन मनोहर आप आना।

कवि का परिचय
नाम-विजय प्रकाश रतूड़ी
प्रधानाध्यापक, राजकीय प्राथमिक विद्यालय ओडाधार
ब्लॉक भिलंगना, जनपद टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड

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