शिक्षक विजय प्रकाश रतूड़ी की कविता-फागुनी बयार
फागुनी बयार
आ गई है ऋतु सुहानी,
वसंती बयार लेकर।
फागुनी कोमल पवन वह,
हाथ फेरे सिर पे सर सर।
और सर्दी की विदाई।
उसके आते हो गई है।
भानु की स्वर्णिम किरण भी।
शक्तिशाली हो गई है।
राग घुघुती कोकिला का,
कान मिश्री घोलता है।
मस्त भंवरा हो गया है,
कुसुम पुष्पा ढूडता है।
पात पेड़ों पर उगे अब,
पात पर्णी टल गया है।
हरित लतिकाएं महकती,
पेड़ का मुख खिल गया है।
देख सरसों खेत में वह,
आज खिलकर खिलखिलाए।
पीत पीला हो गया वह,
खेत सबका मन लुभाये।
झूम कर उड़ते पखेरु,
गीत गाते चहचहाते।
आज उनके नाद में कुछ,
खास है जो मन लुभाये।
और खेतों की मुंडेरें,
फ्योंलि कैसे मुस्कराती।
चहुं दिशा आंनद पसरा,
सारी जगती मन लुभाती।
आ गया वह साथ लेकर,
ऋतु सुहानी हाथ थामे।
वसंत का आना हुआ है।
कहो स्वागत के तराने।
कवि का परिचय
नाम-विजय प्रकाश रतूड़ी
प्रधानाध्यापक, राजकीय प्राथमिक विद्यालय ओडाधार
विकासखंड भिलंगना, जनपद-टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।