शिक्षक विजय प्रकाश रतूड़ी की कविता-करो मेहनत वही पूजा
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करो मेहनत वही पूजा!
लिखूं ऐसा कभी मैं भी,
कि जन के मन समा जाए।
मुझे संतोष दे मन का,
संदेशा कुछ चला जाए।
नहीं तारीफ झूठी मैं,
करूं केवल दिखावे की।
उसी को शब्द दूं अपने,
जो शब्दों में समाये भी।
ना सावन का बनूं अंधा,
जो देखूं मैं हरा केवल।
ना हर ओर मैं देखूं,
हमेशा सब जगह सूखा।
लिखे मेरी कलम ऐसा,
सच हो जो जमाने का।
मेरे ईश्वर ऐसी रचना,
मुझ से तू लिखा देना।
कहें कलिकाल में उपक्रम,
कुछ ऐसे फलिल होते।
कला का युग है कलिकाल,
कलाएं दें फलक इसमें।
मगर मेरा भरोसा है,
मेहनत की तपस्या पर।
यही हर काल में भारी,
रही है सब समस्या पर।
तपाना इस तन मन को,
कब आसान होता है।
मगर सिद्धि का ये अमृत,
बस मेहनत में होता है।
बस मेहनत और अध्ययन,
यही रस्ते तपस्या के।
इन्हीं रस्तों से निकलेंगे,
सभी उत्तर परीक्षा के।
नहीं लघु मार्ग से हासिल,
सफलता सिद्धि देती है।
हे!सिद्धि तुम सचमुच ही,
कडी परीक्षा लेती हो।
मगर जिसने किया हासिल,
पाया जिसके सिद्धि को।
नहीं अवरुद्ध कर पाया,
कोई उसकी प्रसिद्धि को।
करो आह्वान सिद्धि का,
मेहनत से वो आयेगी।
करो मेहनत वही पूजा,
वही जीवन संवारेगी
कवि का परिचय
नाम-विजय प्रकाश रतूड़ी
प्रधानाध्यापक, राजकीय प्राथमिक विद्यालय ओडाधार
ब्लॉक भिलंगना, जनपद टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड
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