उत्तराखंड की आपदा पर कवि सोमवारी लाल सकलानी की कविता-देख तबाही के मंजर को
देख तबाही के मंजर को, व्यथित हृदय क्यों टूट रहा !
धरती माता की चीखों से, नील नलय तक सिहर गया !
सात फरवरी इक्कीस प्रात को, बद्रीनाथ भी रूठ गया,
पंद्रह जून सन तेरह की, केदार यादें ताजा करा गया !
केदारनाथ तो तेरह में रूठा, अब बद्रीनाथ भी रूठ गया,
ग्रीष्म शिशिर हर ऋतुओं में, वीभत्स रूप दिखाने आया।
मुरझा गई आस्था क्षण में , निराशा ने फिर मन घेर लिया,
देवभूमि की आस्थाओं पर, किसने यह पानी फेर दिया !
देख तबाही के मंजर को ! कवि निशांत हृदय है टूट रहा !
मां की ममता के आंचल से, क्यों भूमि- पुत्र भी दूर हुआ?
ऐ चंद्रकुंवर तू पुनः प्रकट हो! हरले इस मन की पीड़ा को,
धरती माता सिसक रही है, क्यों भूल गया है अपने पन को !
तेरी सुंदर सरिता हंस बालियां,क्यों रूद्र रूपधर हुंकार रही
शांत सौम्य शुचि सरितायें,क्यों विषधर बनकर फुंकार रही !
मत पुकार पागल कभी मुझको, मैं बहुत दूर चला आया हूं ,
नील नलय से अब देख रहा हूं, मैं तेरे कलयुग ने खाया हूं !
तूने सुंदर वसुधा नरक बना दी, दुर्गंध गंदगी कूड़े करकट से,
नदियां तीर्थ स्थल दूषित हो गए ,नित अतिक्रमण प्रदूषणसे !
अब क्यों रोता रे मूर्ख कवि,तू भी बड़ा बांध निर्माण करा ले!
सडती गलती लाश उरों पर, राजनीति- सियासत चमका दे !
कह ना कहानी अब प्रलय की, मैने बहुत तुझे समझाया था,
तू दंभी लोभी हठ धर्मी मानव, कब मेरी बात को समझा था।
वर्षा ऋतु में तो बाढ़ है आती, यह सीत शरद में कैसे आई है
चेतावनी संकेत है तुझको, तू प्रकृति शक्ति अब मान ही ले !
कह ना कहानी अब इस प्रलय की, कुछ नई नीति बनवा ले,
मत जख्मों को पुनः कुरेद कर ,मन को पीड़ा नहीं पहुंचा दे !
देख तबाही के मंजर को ! व्यथित हृदय क्यों फिर टूट रहा,
धरती माता की चीखों से,क्यों नील- नलय तक सिहर उठा !
कवि का परिचय
सोमवारी लाल सकलानी, निशांत।
सुमन कॉलोनी, चंबा, टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड।
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।