झंडा दिवस पर कवि सोमवारी लाल सकलानी की कविता- सशस्त्र झंडा दिवस में देखा, महा शौर्य कुर्बानी का लेखा
सशस्त्र झंडा दिवस
सशस्त्र झंडा दिवस में देखा, महा शौर्य कुर्बानी का लेखा।
शहीदों का इतिहास टटोला, जल थल नभ पराक्रम देखा।
सर्जिकल स्ट्राइक में देखा, गलवान घाटी में वीरों को देखा ,
म्यांमार में घुसकर देखा, वीरों को नभ में भी उड़ते देखा।
अपने अभिनंदन को देखा, महाबली शूर वीरों को देखा ।
जेट विमान पर बैठे देखा, अब राफेल पर भी उनको देखा।
चिनूक, तेजस पर देखा, ऊंचाई पर ही सदा उड़ते देखा।
नभ अंतरिक्ष रण क्षेत्र में देखा, सेना के वीरों को देखा ।
सागर में गोते खाते देखा, तूफानों से भिड़ते उनको देखा।
दुश्मन की छाती चढ़ते देखा, अपने वीर जवानों को देखा।
टैंक – तोपों के ऊपर देखा, सर सीने पर गोली खाते देखा ,
दुश्मन का मर्दन करते देखा, बर्फ -मरुस्थल पर भी देखा।
वीर माताओं का साहस देखा, वीरांगनाओं का महात्याग देखा ।
शहीद सैन्य परिवार को देखा, उनसे जीवन का मतलब सीखा।
विश्वयुद्ध वीरों को देखा, आतंकियों से घिरते – भिड़ते भी देखा ।
कारगिल विजय उत्सव देखा, शौर्य पराक्रम हिन्द वीरों का देखा।
सशस्त्र झंडा दिवस के दिन, कृतज्ञ राष्ट्र को आदर देते देखा।
शूरवीर महाबलियों की खातिर, झंडे को देते सम्मान भी देखा।
कवि का अनुरोध
पाठकों से अनुरोध है कि अधिक से अधिक अंशदान सशस्त्र झंडा दिवस की झंडियों का जिला सैनिक कल्याण परिषद को स्वेच्छा से देने की कृपा भी करेंगे। यह अंशदान सबसे बड़ा महादान है। जो कि हमारे वीर अपंग, शहीद सैनिक और सैनिक परिवारों के कल्याण के लिए प्रयुक्त होता है।
कवि का परिचय
सोमवारी लाल सकलानी, निशांत ।
सुमन कॉलोनी चंबा, टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।