कवि सोमवारी लाल सकलानी की कविता-मेरे मेहमानों को देखो

मेरे मेहमानों को देखो !
आएं हैं मेहमान आजकल मेरे घर पर,
कुछ दानें चूंगते, क्रीड़ा करते प्रतिपल।
बैठा रहता हूं फुर्सत में- जब मैं दर पर,
असीम खुशी आ जाती है मेरे उर पर।
आए है नन्ही नातिन आजकल घर पर,
गौरैया की चहचहाट नित सुनती दर पर।
लाख परिंदे उड़ते रहते हैं दूरस्थ गगन में,
गौरैया के घर घोंसले निर्मित मेरे घर पर।
कट जाता है समय – खुशी मे यह देखकर,
चिड़ियाओं का स्वरअमृत निसृत मन भर ।
नव स्फूर्ति नवल चेतना आ जाती लौटकर,
लग जाता है राग अलपने हृदय पटल पर।
कहां जा रहे स्वर्ग खोजने! आ जाओ घर।
मीठा भोजन -शीतल जल है, मेरे घर पर।
जब खुशियों की चाहत हो – आ जाना तुम,
और देखना स्वर्ग उतर कर आया घर पर।
सदाशिव- ईष्टदेव महादेव व्रत है घर पर,
हलवा आलू तल्ड लमेंडा बनेगा घर पर।
आ जाना तुम व्रत कथा मनाने मेरे घर पर,
और देखना खुशी का आलम मेरे घर पर।
कवि का परिचय
सोमवारी लाल सकलानी, निशांत।
सुमन कॉलोनी, चंबा, टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड।
भौत ही सुंदर रचना?????
भौत ही सुंदर रचना????