डॉ. मुनिराम सकलानी मुनींद्र की कविता- अमर शहीद श्रीदेव सुमन
हे! उत्तराखंड के अग्रदूत
भारत माता के प्यारे सपूत
अमर शहीद श्रीदेव सुमन
तुम्हें मेरा षत-षत नमन।
सादा जीवन परम उच्च विचार
तुम्हारे जीवन के रहे हैं आधार
तुम क्रान्तिकारी, साहित्य प्रेमी
तुम समाजसेवी, संस्कृति स्नेही।
तुम सत्यनिश्ठा, मर्यादा की मूर्ति
तुम षालीनता की एक प्रतिकृति
विद्वता व सौभ्यता की प्रतिमूर्ति
उत्तराखण्ड की हो महान विभूति।
तुम रहे महान स्वतंत्रता सेनानी
रहे सदैव ही परम स्वाभिमानी
सदैव भश्टाचार भगाने की ठानी
नहीं तुमने कभी भी हार मानी।
तुम सत्य और अहिंसा के परम दूत
जन-जन के तुम रहे, सदा अग्रदूत
किया चैरासी दिन आमरण अनषन
धन्य, हे!, उत्तराखंड के महा सपूत।
टिहरी राजशाही में जनता को जगाया
स्वयं जेल में रहकर आन्दोलन चलाया
सामन्तषाही में प्रजा का मनोबल बढाया
कुप्रथाओं का विरोध कर सुपथ अपनाया।
तुम महात्मा गांधीजी जी के परम अनुयायी
प्रजा पर न पडने दी भ्रष्टाचार की परछाई
जेल में यातनायें सही, परन्तु हार न मानी
लुटा दिया अपना यौवन, यह है अमर कहानी।
श्रीदेव सुमन,आज हम सब आजाद हो गये
परन्तु तुम्हारे वे स्वप्न भी अभी पूरे नहीं हुये
श्रीदेव सुमन तुम मरे नहीं, मौत ही मर गई
तुम शहीद हुये व देश सेवार्थ समर्पित हुये।
कवि का परिचय
डॉ. मुनिराम सकलानी, मुनींद्र। पूर्व निदेशक राजभाषा विभाग (आयकर)। पूर्व सचिव डा. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल हिंदी अकादमी,उत्तराखंड। अध्यक्ष उत्तराखंड शोध संस्थान। लेखक, पत्रकार,कवि एवम भाषाविद। निवास : किशननगर, देहरादून, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।