युवा कवयित्री अंजली चंद की कविता- काश चरित्र को पवित्र करने का भी कोई इत्र होता
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काश चरित्र को पवित्र करने का भी कोई इत्र होता
फिर से दोहरा पाता उन कोशिशों को
जो नाकाम रही
थोड़े से सब्र से थोड़ी सी समझ से
फ़िर से बुन पाता उन टूटे ख्वाबों को
जो बीते दिन टूटकर बिखर गए,
काश चरित्र को पवित्र करने का भी कोई इत्र होता ।
प्रमाणित करती खुद की वाणी को थोड़ा सा
संयम दे वक्त से थोड़ा वक्त उधार ले लेता
फिर से संजो पाता वो ख्वाब जो धुंधला गए
फिर से जला पाता वो दिया अपनेपन का अपनत्व से
फ़िर से उठा निगाहें चल पाता समाज में
फिर से बदल जाता वो नज़रिया किसी के नजर का
काश चरित्र को पवित्र करने का भी कोई इत्र होता। (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)
बिना अतीत के पन्नों को समेटे
काश मैं भी बिना कलंक के रह पाता वर्तमान में
परख पाता कोई मुझको मेरे निस्वार्थ गुणों से
ना कोई अतीत से तोल करता गुणों को
विश्वास भरी नज़र , सहानुभूति देते हाथ
काश कोई रख कर दे पाता छोटी सी झूठी दिलासा
काश चरित्र को पवित्र करने का भी कोई इत्र होता।
बिखरी जिंदगी, अधूरे ख़्वाब , टूटा मन
अन्तर्मन की ख़ुद से ख़ुद की जंग
सहला जाता कोई,
अपना कह काश ठहर जाता कोई,
समाज द्वारा दिया गया संदर्भ को व्याखित कर
काश चरित्र को पवित्र करने का भी कोई इत्र होता।
कवयित्री का परिचय
नाम – अंजली चंद
खटीमा, उधमसिंह नगर, उत्तराखंड। पढ़ाई पूरी करने के बाद सरकारी नौकरी की तैयारी कर रही हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।