युवा कवि वरुण सिंह गौतम की कविता- हमने बीने पत्तल जंगल के राहों में
हमने बीने पत्तल जंगल के राहों में
कोई मारा पत्थर बीच बीच बाजारों में
चूल्हे के अंगीठियों में
हमने झोंके धुंध झिड़कियों में
बंद काले दबे कोठरी में
एक उम्मीद लिए बैठे हैं
कि मेरे भी स्वप्न सजेंगे एक
दिवस, बैठें हैं पक्षी, उड़ें नहीं
सहमी हुई दर्द में जी रहीं
अपने अश्रुओं से आँखे पोंछ रही
देखा ही दिन क्षणिक ही….
देखते ही काली रात हो चली
नंगी है सड़कें, देह तो बची नहीं
मणिपुरी भर्त्सना में कलप रहे
दो टुकड़ियों जमीं पे हमें
दफ़न नहीं अपितु गाड़ रहें
सड़ी हुई आंत पे हमें अट्टालिका के
चकाचौंध में दबी हुई हमारी दास्तानें
मर गई अधजली तड़पते लाशों पे
ये चुटकुला नहीं, दर्द-ए-बयां है
कौन है रे अछूत अभागा मवेशी
नहीं, बेहया बहिष्कृत आदिवासी हूँ !
कवि का परिचय
वरुण सिंह गौतम बिहार के रतनपुर, बेगूसराय जिले के रहने वाले हैं। वर्तमान में वह काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी से हिन्दी स्नातक के लिए अध्ययनरत हैं। इनकी पहली पुस्तक मँझधार ( काव्य संग्रह ) है। इसे उन्होंने कोरोना काल के दौरान लिखा।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।