युवा कवि सूरज रावत की कविता- एक बार फिर कश्मीर जल रहा है

एक बार फिर कश्मीर जल रहा है,
फिर वही आतंकवाद पल रहा है,
निहत्थे बेकसूरों को मारकर मर्दानगी दिखाते हैं,
ये वही मजहबी गुंडे हैं,
सामने बात करने की हिम्मत नहीं,
पीठ पीछे छुपकर औकात दिखाते हैं,
धर्म पूछकर निर्दोष हत्याओं को दिया अंजाम ,
चीख पुकार से मच गया कोहराम,
आतंक से सराबोर, खून से लतपथ हो गया पहलगाम, (कविता जारी अगले पैरे में देखिए)
किसी का सुहाग उजड़ गया,
कोई माँ बाप से बिछड़ गया,
किसी की गोद सूनी हो गयी,
कश्मीर में फिर से अनहोनी हो गयी,
परिवार संग घूमने, खुशियां साझा करने गये थे,
पर वो बेकसूर जिंदगी गवां बैठे,
ना जाने किसके ये नापाक इरादे थे,
दुश्मन की चाल थी या, अपनों की गद्दारी,
क्यों इतने निर्भीक हो गये थे ये अत्याचारी, (कविता जारी अगले पैरे में देखिए)
दुःख संवेदना मात्र से, दुःख दूर नहीं हो जायेगा,
अगली बार कश्मीर सोच कर भी हिंदू डर जायेगा,
हमें समानता , समरसता सीखाते हो,
पीठ पीछे फिर वही मजहबी आतंकवाद फैलाते हो,
इस कायरता के बाद खुद को बचा ना पाओगे,
इस बार सिर्फ सर्जिकल स्ट्राइक नहीं,
हो सकता है इस बार नक्से से भी साफ हो जाओगे,
सवाल है जम्मू कश्मीर की सरकार पर,
सवाल है भारत की मोदी सरकार पर,
कहाँ सुरक्षा व्यवस्था? (कविता जारी अगले पैरे में देखिए)
कब तक, आखिर कब तक,
कभी हमारे वीर जवान, कभी पर्यटक,
ऐसे निर्दोष मरते रहेंगे हमारे ही घर पर,
अमन शांति के नाम पर ये क्या चल रहा है,
एक बार फिर कश्मीर जल रहा है,
फिर वही आतंकवाद पल रहा है।
कवि का परिचय
सूरज रावत, मूल निवासी लोहाघाट, चंपावत, उत्तराखंड। वर्तमान में देहरादून में निजी कंपनी में कार्यरत।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।