शिक्षिका उषा सागर की कविता- कुछ पल ऐसे भी

ओ गुजरा हुआ जमाना आज,
मुझे बहुत याद आ रहा है।
बिछड़े हैं जो अपने मुझसे,
ओ दौर याद आ रहा है।।
खुशियों के दिन संग-संग,
हम सब ने बिताए थे।
सुख-दुख और गम की घड़ियां,
मिलजुल कर निभाए थे।।
आज बहारों की राहें,
मेरे दर से जुदा हो गयी हैं।
तुम सबके दूर चले जाने से,
मेरी जिंदगी वीरान हो गई है।।
खुशियां जमाने भर की,
थी भरी हुई मेरे दामन में ।
ओ लूट ली जालिमों ने,
हरियाली भरे सावन में ।।
न भुला पाएंगे हम तुम्हें दोस्तों,
और न भुला पाओगे तुम।
एक-दूसरे का साथ मजबूत था,
हर सुख-दुख में मुझे याद आतीं हो तुम।। (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)
एक-दूसरे के दर्द से हमें सरोकार था,
इक दूजे से हमें अपनापन और प्यार था।
आज सब स्वार्थ और अहंकार से भरे हैं,
अपनापन और भावनात्मकता से परे हैं ।।
आज के सब साथी स्वार्थी बने हैं,
अंहकार को स्वाभिमान कह रहे हैं।
अपनापन तो दूर की बातें हैं,
बस शब्दों के तीर चल रहे हैं।।
मैं हूं सर्वोपरि यही इनका करम है,
लेकिन समझें न नादान कि ए तो भरम है।
किसी का मन व्यथित न हो कभी,
यही तो सबसे बड़ा पुण्य और धरम है।।
है रब से दुआ मेरी ओ साथी फिर मिलें,
सब हंसी-खुशी साथ रहें और दिन यूं कटें।
और फिर एक दिन मिलने का वादा कर
अपने-अपने गंतव्य तक चलें।।
कवयित्री का परिचय
उषा सागर
सहायक अध्यापक
राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय गुनियाल
विकासखंड जयहरीखाल
जिला पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड।
नोटः सच का साथ देने में हमारा साथी बनिए। यदि आप लोकसाक्ष्य की खबरों को नियमित रूप से पढ़ना चाहते हैं तो नीचे दिए गए आप्शन से हमारे फेसबुक पेज या व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ सकते हैं, बस आपको एक क्लिक करना है। यदि खबर अच्छी लगे तो आप फेसबुक या व्हाट्सएप में शेयर भी कर सकते हो।

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।