कवि एवं शिक्षक श्याम लाल भारती की कविता- चारों तरफ हाहाकार क्यों

चारों तरफ हाहाकार क्यों
इस करुण द्रवित हृदय में सबके,
क्यों असहनीय सी ध्वनि बज उठती।
क्यों चारों ओर हाहाकार मचा है,
लगता शत्रु की पैरों की छमछम
कठोर झनकार धुन गरजती।।
वेदना मन में हर मानुष के हृदय पटल पर,
लगता काल कल्पित अपना जाल बिछाती।
बिलखते करुण रुदन स्वर चारों तरफ,
मन को पागल सा विक्षिप्त कराती
क्यों व्यथित मन चारों ओर से,
लगता शिकन माथे पर भरती।
शत्रु का डर हर छोर पोर से,
वेदना मन में करुण रुदन लिए सहती।।
“पर अब डर मत”
आती ध्वनि सुकोमल चारों ओर से,
मन में कुछ मृदुल सी आहें भरती।
कहती चिंतित न हो मानुषअब तो
तेरी जिंदगी की मैं, तकलीफ हरती
बीत जाएगा करुण रुदन मंजर,
थाम ले पैर जो चारों और मचलते
आऊंगी क्षितज छोर से काल बनकर,
अदृश्य शत्रु पर जरूरी वार अब मैं करती।।
क्यों व्यथित हो रहा मानुष अब तू,
काल की गति अब नहीं ठहरती।
चेतन मन बना ठहर घर में,
तभी काल शत्रु के मैं प्राण हरती।
मैं प्राण हरती, मैं प्राण हरती।।
कवि का परिचय
नाम- श्याम लाल भारती
राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसे लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।






बहुत सुन्दर रचना