दृष्टिबाधित दिव्यांग डॉ. सुभाष रुपेला की कविता-आसान नहीं दुल्हे राजा होना
आसान नहीं दुल्हे राजा होना
कितना मुश्किल है किसी का आज शौहर होना।
शिक्षा दौलत नियमित आय बराबर होना।।
शादी को खेल समझ आँखें लड़ा मत लेना।
इतना आसान नहीं होता कभी वर होना।।
है नहीं चाहता कोई किराये पर रहना।
कितना होता है कठिन अपना कोई घर होना।।
है वधू के लिए क़ाफ़ी दूसरे घर बसना।
वर का मतलब है खड़े अपने पैरों पर होना।।
वर को पड़ते चने लोहे के चबाने हर पल।
देखना उसको है हर चीज़ का घर पर होना।।
शानो शौक़त तो हनीमून की टिकती कुछ दिन।
तय है दुल्हे राजा का बाद में नौकर होना।।
यातना दे सताना मत कभी पत्नी अपनी।
वरना तय है तुम्हारा जेल के अंदर होना।।
गोद में बच्चे उठा घूमने जाना होगा।
इतना आसान नहीं घर बसा शौहर होना।
सब लुटाना किसी पर सुख की नहीं गारंटी।
चाहिए वर का सदा अच्छा मुक़द्दर होना।।
कब रुपेला बना बातें मिला सुख है वर को।
तय है सब फ़र्ज़ निभा प्यार से सुखकर होना।।
कवि का परिचय
डॉ. सुभाष रुपेला
रोहिणी, दिल्ली
एसोसिएट प्रोफेसर दिल्ली विश्वविद्यालय
जाकिर हुसैन कालेज दिल्ली (सांध्य)
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।